जो चमनजी मिथिला मैथिली और मिथिलावाद के नाम पर काकध्वनि कर रहे हैं उनके लिए बतौर विश्वाघात का नमूना पेश है.
स्वतंत्रता के बाद संपन्न हुए पहले आम चुनाव में सरकार तिरहुत के अंतिम शासक कामेश्वर सिंह दरभंगा से चुनाव लड़ रहे थे. उनका चुनाव चिन्ह था साइकिल छाप. कामेश्वर सिंह न केवल संविधान सभा के सदस्य थे. उनका व्यक्तित्व दबदबा ऐसा था की मिथिला विरोधी मिथिला का अहित करने से पहले दस बार सोचते थे. चुनाव में उन्होंने ढेर सारी साइकिल का वितरण करवाया था ताकि मतदाता और उनके इलेक्शन एजेंट बूथ तक सही समय पर जा सकें। उनके खिलाफ चुनाव प्रचार करने के लिए खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू आये थे और दरभंगा में कह गए थे की इस सामंती जमींदार को दरभंगा सीट से हराना उनके नाक का सवाल है. मैथिलों को कहाँ उस समय एहसास रहा की कामेश्वर सिंह को उनके अपने हैं उनको हरा कर वह मिथिला का कितना नुकसान कर रहे हैं.
स्वतंत्रता के बाद संपन्न हुए पहले आम चुनाव में सरकार तिरहुत के अंतिम शासक कामेश्वर सिंह दरभंगा से चुनाव लड़ रहे थे. उनका चुनाव चिन्ह था साइकिल छाप. कामेश्वर सिंह न केवल संविधान सभा के सदस्य थे. उनका व्यक्तित्व दबदबा ऐसा था की मिथिला विरोधी मिथिला का अहित करने से पहले दस बार सोचते थे. चुनाव में उन्होंने ढेर सारी साइकिल का वितरण करवाया था ताकि मतदाता और उनके इलेक्शन एजेंट बूथ तक सही समय पर जा सकें। उनके खिलाफ चुनाव प्रचार करने के लिए खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू आये थे और दरभंगा में कह गए थे की इस सामंती जमींदार को दरभंगा सीट से हराना उनके नाक का सवाल है. मैथिलों को कहाँ उस समय एहसास रहा की कामेश्वर सिंह को उनके अपने हैं उनको हरा कर वह मिथिला का कितना नुकसान कर रहे हैं.
मिथिला और मिथिलावाद से धोखा किसने किया था.
नेहरूजी को कहाँ याद रहा की जिस कांग्रेस पार्टी का केवाला उन्होंने जबरिया अपने नाम कर लिया उस कांग्रेस पार्टी के स्थापना से लेकर आने वाले वर्षों में इस परिवार का क्या योगदान रहा था?
राज दरभंगा दो दैनिक समाचार पत्रों आर्यावर्त इंडियन नेशन का प्रकाशन किया करता था. इन दोनों अखबारों में मिथिला के मुद्दों को दमदार ढंग से रखा जाता था. इसे बंद करवाने का श्रेय किसे जाता है?
सरकार तिरहुत उर्फ़ राज दरभंगा को समाप्त करने का ऐसा हनक था की कामेश्वर सिंह के मृत्यु के बाद तीन चौथाई सम्पति महज कामेश्वर सिंह के डेथ ड्यूटी चुकाने में समाप्त हो गयी.
मिथिला में नेतृत्व की लगभग शून्यता ही रही जिसे कभी कभी कुछ खुश लोगों ने ख़तम करने की असफल चेष्टा की. बाबू जानकीनन्दन सिंह उस समय कांग्रेस के सशक्त नेता था. 1953 में कांग्रेस का अधिवेशन बंगाल के कल्याणी में होना निश्चित किया गया. बाबू जानकीनन्दन सिंह उस अधिवेशन में अलग मिथिलाराज की मांग उठाना चाहते थे. वह अपने समर्थकों के साथ कल्याणी कूच कर गए लेकिन उन्हें उनके समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने एक नयी पार्टी मिथिला कांग्रेस की स्थापना की. उनकी आवाज को दबा दिया गया. जानकीनन्दन सिंह के खिलाफ जासूसी करने वाले कौन लोग थे?
धोखा किसने किया था?
डाक्टर लक्ष्मण झा मिथिलावाद की सशक्त आवाज थे. उनको पागल घोषित करने का दूषित अभियान चलाया गया. ऐसा करने वाले कौन लोग थे?
धोखा किसने दिया।
हम लोग बस अनुमान लगा सकते हैं की अगर ललित नारायण मिश्र जीवित होते थे तो आज के मिथिला का क्या स्वरुप होता। उन्हें शक था की उनकी ह्त्या कर दी जाएगी। उनकी ह्त्या कर दी गयी. कुछ आनंदमार्गियों को ह्त्या के आरोप में आरोपित कर मुकदमा चलाया गया. यह मुकदमा दशकों तक एकता कपूर के सीरियल की तरह चलता रहा. उस समय ललित बाबू की विधवा ने उनके अंतिम संस्कार पर व्यथित होकर कुछ कहा था. ललित बाबू को धोखा किसने दिया?
यही हाल कुमार गंगानंद सिंह का किया गया. उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया तो गया लेकिन उन्हें कोई प्रसाशनिक अधिकार नहीं था.
पंडित स्व. हरिनाथ मिश्र मिथिला के एक सशक्त कॉंग्रेसी नेता थे. 1967 में कांग्रेस संगठन की ओर से चुनाव लड़ रहे थे. और उनके विरोध में कांग्रेस ने अधिवक्ता भूपनारायण झा को उम्मीदवार बनाया। हरिनाथ मिश्र को हारने के लिए इंदिरा गांधी खुद बेनीपुर चल कर आयीं थी। तब सुप्रसिद्ध मैथिली कवि काशीकान्त मिश्र मधुप ने एक कविता लिखी थी दुर दुर छिया छिया छिया हरि के हरबै ले एली नेहरूजी के धिया". राजीव गाँधी ने हरिनाथ मिश्र को कैसे दुत्कारा था यह शायद कम लोगों को पता होगा। मुख्यमंत्री विनोदानंद झा को ऐसे ही चलता कर दिया गया.
धोखाधड़ी के कितने उदहारण दूँ
यही हाल कुमार गंगानंद सिंह का किया गया. उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया तो गया लेकिन उन्हें कोई प्रसाशनिक अधिकार नहीं था.
पंडित स्व. हरिनाथ मिश्र मिथिला के एक सशक्त कॉंग्रेसी नेता थे. 1967 में कांग्रेस संगठन की ओर से चुनाव लड़ रहे थे. और उनके विरोध में कांग्रेस ने अधिवक्ता भूपनारायण झा को उम्मीदवार बनाया। हरिनाथ मिश्र को हारने के लिए इंदिरा गांधी खुद बेनीपुर चल कर आयीं थी। तब सुप्रसिद्ध मैथिली कवि काशीकान्त मिश्र मधुप ने एक कविता लिखी थी दुर दुर छिया छिया छिया हरि के हरबै ले एली नेहरूजी के धिया". राजीव गाँधी ने हरिनाथ मिश्र को कैसे दुत्कारा था यह शायद कम लोगों को पता होगा। मुख्यमंत्री विनोदानंद झा को ऐसे ही चलता कर दिया गया.
धोखाधड़ी के कितने उदहारण दूँ
कोसी नदी की विभीषिका मिथिला को बर्बाद करती रही. आजादी से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने कोसी पर बाँध बनाने के लिए फंड निर्धारित किया। देश आजाद हुआ और कोसी बाँध का फंड पंजाब ट्रांसफर हो गया. इसका बहुत विरोध हुआ था. नेहरूजी तब कहा की सरकार के पास पैसे नहीं हैं इसलिए लोग श्रमदान से बाँध बना लें. भारत सेवक समाज की स्थापना हुई और लोगों ने श्रमदान कर बाँध बना भी लिया। जब पंडित नेहरू इसका उद्घाटन करने आये थे तब नाराज लोगों ने उन्हें सड़ा आम भिजवाया था.
1934 के भूकंप ने मिथिला को दो भागों में विभाजित कर दिया। सड़क, रेल और पुल संपर्क ध्वस्त हो गए. तो उन सत्तर सालों में क्यों केंद्र सरकार ने मिथिला के भौगौलिक एकीकरण के लिए कदम नहीं उठाया?
धोखा किसने दिया था?
मिथिला का एकीकरण सन 2003 अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के दौरान हुआ जब कोसी पर पुल निर्माण हुआ, ध्वस्त रेल लाइन के निर्माण की संस्तुति दी गयी. मैथिली को संविधान के आठवें अनुसूची में स्थान उन्हीं के कार्यकाल में मिला। लेकिन जब चुनाव हुए तो भाजपा मिथिला में बुरी तरह पराजित हुई. अगर अटलजी ने सचमुच में मिथिला के लिए ऐतिहासिक काम किया तो आपने उन्हें हराया क्यों?
धोखा किसने दिया था?
कभी मिथिला चीनी, कागज़ उत्पादन और पुस्तक प्रकाशन जैसे उद्योग का केंद्र हुआ करता था. आचार्य रामलोचन शरण का पुस्तक भण्डार और हिमालय औषधि केंद्र पुरे भारत में विख्यात था. इन दो संस्थानों को बर्बाद करने का श्रेय लदारी गाँव के निवासी और समाजवादी नेता कुलानन्द वैदिकजी को जाता है. बामपंथी नेता सूरज नारायण सिंह चीनी मिल को खा गए तो अशोक पेपर मिल को कामरेड उमाधर सिंह खा गए. बरौनी खाद कारखाना, पूर्णिया और फारबिसगंज के जुट मिल को बर्बाद करने का श्रेय बामपंथ को जाता है.
धोखा किसने दिया था?
1980 वही कॉंग्रेसी सरकार थी. जग्गनाथ मिश्र मुख्यमंत्री हुआ करते थे. लेकिन सरकार ने मैथिली के दावे को दरकिनार करते हुए उर्दू को द्वितीय राजभाषा बना दिया। तब किसी कॉंग्रेसी बामपंथी ने विरोध नहीं किया था. विरोध किया था तो RSS और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने. पूर्णिया में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् एक बड़ा आंदोलन किया था. आज जो समर्पित कॉंग्रेसी वह तथाकथित स्वर्णकाल ब्राह्मणों का वह स्वर्ण युग याद कर आर्तनाद कर रहे हैं वह बताएं की वह अपने निजी लाभ की कहानी बता रहे हैं या संपूर्ण मिथिला की.
धोखा किसने दिया था?
लालू प्रसाद सामाजिक न्याय के घोड़े पर सवार होकर आये. मैथिली उनके द्वेष का पहला शिकार बनी. मैथिली को BPSC और स्कूली शिक्षा से निकाल दिया गया. उस समय कौन से लोग मौन बैठे हुए थे? इस सरकार को किसका समर्थन था? लालू प्रसाद के राजनैतिक पुरोहित कौन थे?
इसके खिलाफ क़ानूनी लड़ाई ताराकांत झा ने लड़ी थी. लेकिन दुर्भाग्य की मिथिला के कांग्रेस नेताओं की तरह मिथिला के भाजपाइयों की जुबान नहीं थी. अब्दुल बारी सिद्द्की दरभंगा से चुनाव लड़ रहे हैं वह लालू प्रसाद के इस तानाशाही फैसले के साथ खड़े थे. और आज उन्होंने मैथिली में एक चुनावी पर्चा क्या जारी कर दिया की चमनजी मारे ख़ुशी के लोटपोट हो रहे हैं.
यह वही अली अशरफ फातमी हैं जिन्होंने मैथिली को संविधान के आठवें अनुसूची में शामिल करने के फैसले का प्रतिकार किया था. उस समय मिथिला के बामपंथी नेता अंदर ही अंदर इस पुरे अभियान का भट्टा बिठाने के लिए बिसात बिछा रहे थे.
पुरे मिथिला को इंडियन मुजाहिदीन का रिक्रूटमेंट ग्राउंड बना दिया और हम बेखबर रहे की कैसे हमारे बच्चों को जिहाद की आग में झोंका जा रहा है.
धोखा किसने दिया था?
नितीश कुमार भी उसी राह पर हैं.
कांग्रेस अपने कर्मों का फल भोग रही है. कारावास में लालू प्रसाद और यदुकुल में घमासान लालू प्रसाद के प्रारब्ध की शुरुवात है. नितीश कुमार को दैवीय संकेत मिल रहे हैं. भाजपा ने मिथिला के लिए कभी कुछ अच्छा किया था यही उसकी एकमात्र संचित निधि है. तय भाजपा को करना है की वह अपने लिए कौन सा प्रारब्ध चुनेगी।
1980 वही कॉंग्रेसी सरकार थी. जग्गनाथ मिश्र मुख्यमंत्री हुआ करते थे. लेकिन सरकार ने मैथिली के दावे को दरकिनार करते हुए उर्दू को द्वितीय राजभाषा बना दिया। तब किसी कॉंग्रेसी बामपंथी ने विरोध नहीं किया था. विरोध किया था तो RSS और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने. पूर्णिया में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् एक बड़ा आंदोलन किया था. आज जो समर्पित कॉंग्रेसी वह तथाकथित स्वर्णकाल ब्राह्मणों का वह स्वर्ण युग याद कर आर्तनाद कर रहे हैं वह बताएं की वह अपने निजी लाभ की कहानी बता रहे हैं या संपूर्ण मिथिला की.
धोखा किसने दिया था?
लालू प्रसाद सामाजिक न्याय के घोड़े पर सवार होकर आये. मैथिली उनके द्वेष का पहला शिकार बनी. मैथिली को BPSC और स्कूली शिक्षा से निकाल दिया गया. उस समय कौन से लोग मौन बैठे हुए थे? इस सरकार को किसका समर्थन था? लालू प्रसाद के राजनैतिक पुरोहित कौन थे?
इसके खिलाफ क़ानूनी लड़ाई ताराकांत झा ने लड़ी थी. लेकिन दुर्भाग्य की मिथिला के कांग्रेस नेताओं की तरह मिथिला के भाजपाइयों की जुबान नहीं थी. अब्दुल बारी सिद्द्की दरभंगा से चुनाव लड़ रहे हैं वह लालू प्रसाद के इस तानाशाही फैसले के साथ खड़े थे. और आज उन्होंने मैथिली में एक चुनावी पर्चा क्या जारी कर दिया की चमनजी मारे ख़ुशी के लोटपोट हो रहे हैं.
यह वही अली अशरफ फातमी हैं जिन्होंने मैथिली को संविधान के आठवें अनुसूची में शामिल करने के फैसले का प्रतिकार किया था. उस समय मिथिला के बामपंथी नेता अंदर ही अंदर इस पुरे अभियान का भट्टा बिठाने के लिए बिसात बिछा रहे थे.
पुरे मिथिला को इंडियन मुजाहिदीन का रिक्रूटमेंट ग्राउंड बना दिया और हम बेखबर रहे की कैसे हमारे बच्चों को जिहाद की आग में झोंका जा रहा है.
धोखा किसने दिया था?
नितीश कुमार भी उसी राह पर हैं.
कांग्रेस अपने कर्मों का फल भोग रही है. कारावास में लालू प्रसाद और यदुकुल में घमासान लालू प्रसाद के प्रारब्ध की शुरुवात है. नितीश कुमार को दैवीय संकेत मिल रहे हैं. भाजपा ने मिथिला के लिए कभी कुछ अच्छा किया था यही उसकी एकमात्र संचित निधि है. तय भाजपा को करना है की वह अपने लिए कौन सा प्रारब्ध चुनेगी।