भव्य अतीत वाले सरकार तिरहुत के अंतिम शासक महाराज कामेश्वर सिंह का आज के दिन ही निधन हुआ था.
और मौत भी ऐसी थी की तीन चौथाई से अधिक यह समृद्ध रियासत डेथ ड्यूटी टैक्स चुकाने में बिक गयी. जो कुछ बचा उसका सर्वनाश उनके वंशजों, कारिंदों और सरकार ने कर दिया। इसके साथ ही एक विशाल बरगद का पेड़ गिर गया जिसने मिथिला को एक सबल लीडरशिप दिया। उनका प्रभाव कहिये की मिथिला विरोधी बिल में घुसे रहते थे.
संकीर्ण सोच वालों शुरू से ही सरकार तिरहुत की थाती के इर्दगिर्द ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच दी जिसके अंदर वही लोग जा सकते थे जिन्हें कुलीनता का टैग था. लेकिन सरकार तिरहुत ने इतनी लम्बी रेखा खींची थी जिसके सामने कुलीनता का टैग काफी छोटा था.
इतिहासकारों ने स्वतंत्रता संग्राम में इस परिवार के योगदान को कभी भी ठीक से रेखांकित नहीं किया क्यों की ऐसे में जवाहर, मोती जैसे कई लाल और आँधी की चमक धूमिल पड़ जाती।
कामेश्वर सिंह के पूर्वज लक्ष्मेश्वर सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. जब सन 1892 में अँगरेज़ सरकार ने कांग्रेस को इलाहबाद में अधिवेशन करने से मनाही कर दी थी तब लक्ष्मेश्वर सिंह रातों रात आलिशान लोथर कैसल खरीदकर कांग्रेस के नाम कर दी जहाँ अधिवेशन हुआ. लक्ष्मेश्वर सिंह जीते जी वसीयत लिख गए की जब तक राज दरभंगा अर्थात सरकार तिरहुत का अस्तित्व रहेगा कांग्रेस पार्टी को समय समय पर खोरिस (चन्दा) दिया जाता रहेगा।
लेकिन यह सब किसी को याद नहीं रहा.1952 के आम चुनाव में कामेश्वर सिंह दरभंगा से निर्दलीय प्रत्यासी के रूप में खड़े हुए. दरभंगा से कांग्रेस ने श्यामनंदन मिश्र को खड़ा किया। कामेश्वर सिंह का चुनाव चिन्ह साइकिल था। पंडित जवाहरलाल नेहरू लहेरिया सराय के पोलो मैदान में चुनावी सभा करने के लिए आये थे। राज दरभंगा को शोषक और सामंत जैसे उपाधि से नवाजते रहे नेहरूजी पुरे समय जोड़ा बैल चुनाव चिन्ह लोगों को दिखाते रहे। कामेश्वर सिंह चुनाव हार गए. यहाँ के लोगों ने उन्हें यह प्रतिदान दिया।
सरकार तिरहुत के अवसान की और भी कड़ियाँ बांकी थी. उनके वारिस राजकुमार विशेश्वर सिंह (अगर मैं सही हूँ) बौरम प्रवित्ति के थे. एक दिन उन्होंने राज की शेष बची सम्पति पांडिचेरी आश्रम को दान दे दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार तिरहुत मामले में पूर्व में प्रिवी काउन्सिल के द्वारा दिए गए कतिपय निर्णयों का हवाला देते हुए कहा की सरकार तिरहुत impartible estate की हैसियत रखती है जिसका विभाजन नहीं हो सकता है. जो कोई भी राजा हैं वह इसके कस्टोडियन मात्र हैं.
इस परिवार के वंशज एक के बाद एक मिथिला से बाहर चले गए वहीं बस गए. किसी ने प्रतीक रूप में भी राज की परम्परा को कायम करने की कोशिश नहीं की. आधुनिक मैथिली साहित्य के निर्माता पंडित सुरेंद्र झा सुमन इन्हीं कामेश्वर सिंह की खोज थे जिन्हें कामेश्वर सिंह ने मिथिला मिहिर का संपादक नियुक्त किया था. दो दिन बाद अर्थात 3 अक्टूबर को सुमनजी का जन्मदिन है.लिखने बैठेंगें तो स्याही और कागज कम पर जाएगा।
इस परिवार के वंशज एक के बाद एक मिथिला से बाहर चले गए वहीं बस गए. किसी ने प्रतीक रूप में भी राज की परम्परा को कायम करने की कोशिश नहीं की. आधुनिक मैथिली साहित्य के निर्माता पंडित सुरेंद्र झा सुमन इन्हीं कामेश्वर सिंह की खोज थे जिन्हें कामेश्वर सिंह ने मिथिला मिहिर का संपादक नियुक्त किया था. दो दिन बाद अर्थात 3 अक्टूबर को सुमनजी का जन्मदिन है.लिखने बैठेंगें तो स्याही और कागज कम पर जाएगा।
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