खट्टरकाका की डायरी से
Pandit Surendra Jha 'Suman' has moved into another intensity--a condition of complete simplicity. But we remember him for a further union and deeper connection with his feelings and thoughts. We can't go beyond these. He might have forgotten his own thoughts and theories but we can't because they still serve our purpose. We remember him not to pay off the debt we owe him but to enhance the interest that will go on mounting. Remembering Sumanjiis not intended to set a crown upon his life time efforts for the crown is is already set upon his hallowed head, even though we see the crown and not the head that lies in the perfect ease and peace that passeth understanding.
Pandit Surendra Jha 'Suman' has moved into another intensity--a condition of complete simplicity. But we remember him for a further union and deeper connection with his feelings and thoughts. We can't go beyond these. He might have forgotten his own thoughts and theories but we can't because they still serve our purpose. We remember him not to pay off the debt we owe him but to enhance the interest that will go on mounting. Remembering Sumanjiis not intended to set a crown upon his life time efforts for the crown is is already set upon his hallowed head, even though we see the crown and not the head that lies in the perfect ease and peace that passeth understanding.
तिथि के अनुसार आज मैथिली साहित्य व मिथिला के विभूति व शीर्षपुरुष पंडित सुरेंद्र झा सुमन का जन्म दिवस है. मैथिली साहित्य के बृहत्-त्रयी कहे जाने वाले कवीश्वर चन्दा झा, जीवन झा और महामहोपाध्याय परमेश्वर झा व महामहोपाध्याय मुरलीधर झा के मृत्यु के बाद एक सवाल मुँह उठाये खड़ा था की मैथिली साहित्य व आंदोलन को अब कौन नेतृत्व प्रदान करेगा।
मैथिल महासभा के एक कार्यक्रम में सिरकत हुए सरकार तिरहुत के महाराज कामेश्वर सिंह इनके प्रतिभा से प्रभावित हुए जहाँ सुमनजी स्वरचित संस्कृत की कविता का पाठ कर रहे थे. महाराज ने इन्हें मिथिला मिहिर का संपादक नियुक्त किया। वह इतिहास का एक निर्णायक मोड़ था जिसने मैथिली साहित्य व पत्रकारिता की दशा और दिशा बदल दी.
मैथिली साहित्य के कई नामचीन हस्ताक्षर इनके खोज रहे हैं. अनेक भाषाओं के जानकार साहित्य की ऐसी कोई विधा नहीं है जो इनसे छूटा हो. पंडित सुरेंद्र झा सुमन संभवतः भारतीय वाङ्मय के एक मात्र व्यक्तित्व हैं जिन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की अधिकांश रचनाओं का मैथिली में अनुवाद किया।
सुरेंद्र झा सुमन मैथिली, बँगला, संस्कृत सहित कई अन्य भाषाओं के जानकार थे जिन्होंने मैथिली में क्लासिक लेखन शैली को पुष्पित पल्ल्वित किया।वह महज साहित्यकार नहीं थे वह विद्वान् साहित्यकार थे.
लेकिन जिस व्यक्ति ने अपना सम्पूर्ण जीवन मिथिला व मैथिली को होम कर दिया जिसने मैथिली के क्लासिक लिटरेचर को अपनी लेखनी से समृद्ध किया हम उन्हें या तो अज्ञानतावश या जानबूझकर भुला रहे हैं। खासकर बामपंथ विचारधारा वाले साहित्यिक समूह उन्हें इतिहास के पन्नों से हटा देने उन्हें जनमानस से बिस्मृत करने का प्रयास लम्बे समय से कर रहे है.
जिनकी कुल उपलब्धि इतने पन्ने नहीं है जितने में सुमनजी के रचनाओं की सूची है, उन्हें कालजयी घोषित करने के लिए साहित्यिक भोज भंडारा मनाया जाता है. छतरी तान लेने और लाल चश्मा पहन लेने से न सूर्य ढँक सकता है ना सूर्य ग्रहण। सुमनजी समृद्ध साहित्य के उस शिखर के विराजमान हैं जो विरलों को नसीब है.उनके जन्मदिन के अवसर पर उनकी दो रचनाओं चंडी चर्या व हनुमानबाहुक का स्कैन archive.org पर अपलोड किया है. चूँकि दुर्गा पूजा का समय है इसलिए यह पुस्तकें पाठकों को उपलब्ध कराने का विचार किया।, चंडी चर्या दुर्गासप्तसती का अडेप्सन है. सरल मैथिली में लिखी है खासकर बच्चों और उनके लिए जो संस्कृत का पाठ नहीं कर पाते हैं.
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