#जटा_शंकर_झा जिसे कृतध्न मैथिलों ने भुला दिया
कई सालों से यह सवाल मुझे परेशान कर रहा है की मिथिला के इतिहास पर प्रामाणिक व विस्तृत शोध करने वाले मूर्धन्य, स्वनामधन्य इतिहासकार प्रोफ़ेसर जटा शंकर झा विगत कई दशकों से सार्वजानिक व अकादमिक जीवन से दूर क्यों हैं. इतने दशकों में किसी ने उनकी खोज खबर क्यों नहीं ली.
आखिर किसी ने यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि आखिर वह अकादमिक व सार्वजानिक जीवन से इतने दूर क्यों हो गए. उन्हें किसी अकादमिक कार्यक्रम में ले जाते, नहीं जायें तो जिद करें, बालहठ करें।
किसी ने कहा की वह डिप्रेशन में हैं वह इनवैलिड हो चुके हैं. डिप्रेशन में वह नहीं हम लोग हैं और विद्वान् कभी इनवैलिड नहीं होता है. मिथिला में कभी प्रथा थी की बृद्ध विद्वानों के घरों पर बौद्धिक जमावड़ा लगा करता था. विद्वानों का घर ज्ञान का मंदिर है. जटा शंकर झा ने जितना लिखा उसका दस गुणा उनके स्मृति में होगा जिसमें मिथिला के इतिहास के सूत्र मिलेंगें।
अब तो जो समय है उसमें दादुर ही वक्ता हैं तब जटा शंकर झा जैसे लोगों को पूछिहें कौन.
वह हमारी बौद्धिक विरासत हैं और मैथिल इतने कृतध्न हैं की उन्होंने उसी को भुला दिया जिसने हमें मिथिला के इतिहास से परिचय कराया। किसी को इल्म नहीं की उनका यूँ गुमनाम रह जाना हमारे लिए कितना बड़ा बौद्धिक नुकसान है. विस्मरण का आलम यह है की उनकी तस्वीर भी उपलब्ध नहीं है ताकि मेरे जैसे लोग माँ सरस्वती के इस यश्वसी पुत्र का दर्शन कर पायें।
उन्होंने मिथिला के इतिहास के विभिन्न बिंदुओं पर तब शोध किया था जब शोध के साधन सिमित थे. उनके लिखे तक़रीबन सारे लेख और पुस्तकें मैंने पढ़ी है. मिथिला के इतिहास का इतना गहन ज्ञान, दस्तावेजों का अम्बार जिसका कभी नाम तक सुना उसके इर्दगिर्द इतिहास का प्रामाणिक तानाबाना बुनना औसत प्रतिभा से बाहर की बात है. आज हम उन्हीं के लिखे को घुमाफिरा कर प्रस्तुत कर रहे हैं जो जटा शंकर झा लिख गए.
आशीष भाई के अनुसार नब्बे की आयु पार कर चुके श्रद्धेय जटा शंकर झा संभवतः पटना में हैं. उन्होंने ने भी बहुत कोशिश की. उन्हें खोजिये उन्हें सार्वजनिक मंच पर लाइये। हम कंकड़ पत्थड़ इकट्ठा कर रहे हैं लेकिन मिथिला के इस कौस्तुभ मणि की खोजखबर लेने की सुधि किसी की नहीं है.
उनके द्वारा लिखित हिस्ट्री ऑफ दरभंगा राज का स्कैन कॉपी मेरे पास उपलब्ध है 8877213104 पर मेसेज करें मिल जाएगी। लेकिन एक शर्त है की आप और हम उन्हें खोज कर बाहर लायेंगें। कोई अपने थाती का यूँ अपमान नहीं कर सकता है. कोई उनके सगे सम्बन्धी हों वह जानकारी दें.
आखिर किसी ने यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि आखिर वह अकादमिक व सार्वजानिक जीवन से इतने दूर क्यों हो गए. उन्हें किसी अकादमिक कार्यक्रम में ले जाते, नहीं जायें तो जिद करें, बालहठ करें।
किसी ने कहा की वह डिप्रेशन में हैं वह इनवैलिड हो चुके हैं. डिप्रेशन में वह नहीं हम लोग हैं और विद्वान् कभी इनवैलिड नहीं होता है. मिथिला में कभी प्रथा थी की बृद्ध विद्वानों के घरों पर बौद्धिक जमावड़ा लगा करता था. विद्वानों का घर ज्ञान का मंदिर है. जटा शंकर झा ने जितना लिखा उसका दस गुणा उनके स्मृति में होगा जिसमें मिथिला के इतिहास के सूत्र मिलेंगें।
अब तो जो समय है उसमें दादुर ही वक्ता हैं तब जटा शंकर झा जैसे लोगों को पूछिहें कौन.
वह हमारी बौद्धिक विरासत हैं और मैथिल इतने कृतध्न हैं की उन्होंने उसी को भुला दिया जिसने हमें मिथिला के इतिहास से परिचय कराया। किसी को इल्म नहीं की उनका यूँ गुमनाम रह जाना हमारे लिए कितना बड़ा बौद्धिक नुकसान है. विस्मरण का आलम यह है की उनकी तस्वीर भी उपलब्ध नहीं है ताकि मेरे जैसे लोग माँ सरस्वती के इस यश्वसी पुत्र का दर्शन कर पायें।
उन्होंने मिथिला के इतिहास के विभिन्न बिंदुओं पर तब शोध किया था जब शोध के साधन सिमित थे. उनके लिखे तक़रीबन सारे लेख और पुस्तकें मैंने पढ़ी है. मिथिला के इतिहास का इतना गहन ज्ञान, दस्तावेजों का अम्बार जिसका कभी नाम तक सुना उसके इर्दगिर्द इतिहास का प्रामाणिक तानाबाना बुनना औसत प्रतिभा से बाहर की बात है. आज हम उन्हीं के लिखे को घुमाफिरा कर प्रस्तुत कर रहे हैं जो जटा शंकर झा लिख गए.
आशीष भाई के अनुसार नब्बे की आयु पार कर चुके श्रद्धेय जटा शंकर झा संभवतः पटना में हैं. उन्होंने ने भी बहुत कोशिश की. उन्हें खोजिये उन्हें सार्वजनिक मंच पर लाइये। हम कंकड़ पत्थड़ इकट्ठा कर रहे हैं लेकिन मिथिला के इस कौस्तुभ मणि की खोजखबर लेने की सुधि किसी की नहीं है.
उनके द्वारा लिखित हिस्ट्री ऑफ दरभंगा राज का स्कैन कॉपी मेरे पास उपलब्ध है 8877213104 पर मेसेज करें मिल जाएगी। लेकिन एक शर्त है की आप और हम उन्हें खोज कर बाहर लायेंगें। कोई अपने थाती का यूँ अपमान नहीं कर सकता है. कोई उनके सगे सम्बन्धी हों वह जानकारी दें.
No comments:
Post a Comment