Thursday, October 10, 2019

खट्टारकाका की डायरी से
आज भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा है। भगवान जग्गनाथ मैथिल से हमेशा चौकन्ना रहते हैं पता नहीं कब कोई तेजस्वी मैथिल उनसे हुज्जत कर ले, डांट दे कि अधिक काबिल मत बनिये।
"ऐश्वर्य मद मत्तोऽसि मामवज्ञाय वर्तसे,
उपस्थितेषु बौद्धेषु मदधीना तव स्थिति:।। "
मिथिला के करियन ग्राम के 9वीं सदी के प्रसिद्ध नैयायिक उदयनाचार्य का इतिहास जरूर पढ़ना चाहिए। इन्होंने मिथिला में पैर जमा रहे बौद्धों को खदेड़ कर गंगा पार भगा दिया। उदयनाचार्य ने मिथिला में फ़ैल रहे बौद्ध धर्म और नास्तिकता को अपने तर्क, बुद्धि से समूल विनाश कर दिया।
एक बार उदयनाचार्य जगन्नाथ पुरी भगवान के दर्शन करने पहुंच गए। रात्रि हो चुकी थी और मंदिर का पट बंद हो चुका था. उदयनाचार्य ने पुजारी से कहा की पट खोलो मुझे प्रभु जगन्नाथ के अभी दर्शन करने हैं. जब पुजारी ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उदयनाचार्य ने मंदिर के सामने ही प्रभु जगन्नाथ को चुनौती देते हुए कहा.
"ऐश्वर्य मद मत्तोऽसि मामवज्ञाय वर्तसे,
उपस्थितेषु बौद्धेषु मदधीना तव स्थिति:।। "
"हे जगन्नाथ ऐश्वर्य के मद में आपका इतना भी अभिमान करना उचित नहीं। जब निरीश्वरवादी बौद्ध आपका विनाश कर रहे थे तब मैंने ही आपको बचाया था."
किंवदंती है की प्रभु जगन्नाथ ने मुख्य पंडित को स्वप्न में आदेश दिया की उदयनाचार्य के लिए पट खोल दिया जाए और फिर उदयनाचार्य ने मध्य रात्रि में भगवान् का दर्शन किया।
अब दूसरी कहानी। आज भी मिथिला के घुसौथे मूल ( घुसौथे मिथिला का एक प्राचीन ग्राम है) के ब्राह्मण या गाँववासी जगर्नाथपुरी दर्शन के लिए नहीं जाते। कारण जानना हो तो 16वीं सदी का इतिहास पढ़ लीजिये। इस गाँव के प्रसिद्द नैयायिक पण्डित गोविन्द ठाकुर जगर्नाथपुरी की तीर्थयात्रा पर गए। वहाँ पंडों ने उन्हें अटका (प्रसाद खिला दिया). अब गोविन्द ठाकुर जिद कर बैठे की वह बिदाई में धोती लिए बिना नहीं जायेंगें। उन्होंने तर्क उपस्थित किया की वह मिथिला से हैं और विष्णु भगवान् का ससुराल मिथिला है। मिथिला में परंपरा रही है की जब विवाह संबंधों में बंधे दो परिवार जब पहली बार एक दूसरे को अपने यहाँ सिद्ध भोजन ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करते हैं तो बिदाई भी देनी होती है। गोविन्द ठाकुर धरने पर बैठ गए। आजिज होकर भगवान् जगरनाथ ने पंडों को स्वप्न में आदेश दिया की इस व्यक्ति को दो जोड़ी धोती देकर बिदा करो और कह दो की यह फिर यहाँ कभी न आये। उसके बाद से आजतक घुसौथे मूल के मैथिल जग्गनाथपूरी नहीं जाते हैं।
हम मैथिल पुरातन काल से भगवान विष्णु, भोलेनाथ को साधिकार ट्रोल कर दिया करते हैं।
आज राँची में भगवान जग्गनाथ के ऐतिहासिक मंदिर के प्रांगण में भगवान का रथ खींचा जा रहा है। एक दो दिन बाद मैं भी जाऊँगा।
एक बार मैंने एकांत में मंदिर में प्रभु का दर्शन किया था। जब मुख्य पुजारी को बताया कि मैं मिथिला से हूँ तो पुजारी महोदय हें हें कर हँसने लगे कि आप लोग इस ब्रह्मांड के सुपरलेटिव प्राणी हैं जो भगवान को भी दो चार सुना देते हैं। यह सब सौभाग्य मिथिला के लोगों को ही मिलता है। I am proud Maithili. जय भगवान जग्गनाथ जय हुज्जते मिथिला।

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