मैथिली के शलाका पुरुष, संस्कृत व बँगला के विद्वान् पंडित सुरेंद्र झा 'सुमन' महज क्लासिकल ट्रेडिशन के कवि नहीं थे. उन्होंने सन 1969 में मानव के चन्द्रमा पर प्रथम अवतरण पर भी कविता लिखी थी जो उनके कविता संग्रह अंकावली में प्रकाशित हुई थी. अंकावली दरअसल भारतीय वाङ्गमय और विज्ञान पर आधारित अद्भुत कविता संग्रह है. किस अंक पर वैज्ञानिक, दर्शन व अध्यात्म की कौन सी बातें प्रसिद्द हैं उसका काव्यात्मक वर्णन इस संग्रह में है.
कविता में भाषा, भाव और विषय पर सुलभ अधिकार प्राप्त कर लेना यूँ ही संभव नहीं है. इसके लिए पढ़ना पड़ता है तब जाकर कोई विद्वान् साहित्यकार होने की सिद्धि प्राप्त होती है. लेकिन जबरदस्ती के खाद पानी पर पुष्पित पल्ल्वित हो रहे मैथिली के नव साहित्यकार जो सोंगर के सहारे सूर्य को छूने की कोशिश करते हैं उन्हें मैथिली के विशाल वाङ्गमय के गहन अध्ययन और अनुशीलन में कोई रूचि नहीं है या फिर यह सब उनके समझ से बाहर है.
अंग्रेजी क्रिटिसिज्म में हमें Three Essay of TS Eliot पढ़ाया जाता था. यह Eliot के प्रसिद्ध Minnesota address व अन्य का संकलन है जिसमें उनके कुल तीन विद्वत भाषण को संकलित किया गया था क्रमशः Tradition and the Individual Talent, The Frontiers of Criticism और The Function of Criticism.
Eliot मेरे लिए अबूझ पहेली रहे. Tradition and the Individual Talent कवि, साहित्यिक परम्परा, साहित्यिक सृजन और कवि के व्यक्तित्व पर लिखा गया अब तक का सबसे मानक लेख है. जब बात समझ में नहीं आयी की कवि को साहित्यिक परम्परा के साथ चलना चाहिए या उसे अपने Individual Talent की ओर झुकना चाहिए तो यह यक्ष प्रश्न गुरुवर शंकरानन्द पालित सर के सामने उपस्थित किया।
गुरुदेव ने सरल भाषा में एक पंक्ति में पुरे लेख का सार बता दिया।
"अब बताईये की अगर ताजमहल के सामने एक झोपड़ी खड़ा कर दिया जाए तो ताजमहल की सुंदरता बनी रहेगी, घटेगी या बढ़ेगी। आप मान लीजिये की आगरा शहर के कलक्टर हैं तो क्या करेंगें।"
इस अकादमिक प्रश्न का जबाब मैंने ऐसे दिया: "मैं तत्काल इस झोपड़े को हटा दूँगा और उस आदमी को चालान कर दूंगा।"
उनका जबाब था "बिन ट्रेडिशन को समझे पढ़े Individual Talent बेकार है. ऐसी कोई भी रचना कालजयी नहीं हो सकती हैं. यह अकाल मृत्यु को प्राप्त होगी।"
सो हे नव पौध झाड़, घास पैदा करने से बेहतर है साहित्य की धारा को समझें। Eliot का लेख अंग्रेजी में दुरूह लग सकता है तो इसका हिंदी अनुवाद पढ़ें।
मेरा साहित्य कालजयी है वाली आत्ममुग्धता से निकलें।
ऐसा है की 'रेख्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब,
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था।
किताब की आधी स्कैनिंग आज संपन्न हुआ और कल उसे पूरा कर लूंगा।
कविता में भाषा, भाव और विषय पर सुलभ अधिकार प्राप्त कर लेना यूँ ही संभव नहीं है. इसके लिए पढ़ना पड़ता है तब जाकर कोई विद्वान् साहित्यकार होने की सिद्धि प्राप्त होती है. लेकिन जबरदस्ती के खाद पानी पर पुष्पित पल्ल्वित हो रहे मैथिली के नव साहित्यकार जो सोंगर के सहारे सूर्य को छूने की कोशिश करते हैं उन्हें मैथिली के विशाल वाङ्गमय के गहन अध्ययन और अनुशीलन में कोई रूचि नहीं है या फिर यह सब उनके समझ से बाहर है.
अंग्रेजी क्रिटिसिज्म में हमें Three Essay of TS Eliot पढ़ाया जाता था. यह Eliot के प्रसिद्ध Minnesota address व अन्य का संकलन है जिसमें उनके कुल तीन विद्वत भाषण को संकलित किया गया था क्रमशः Tradition and the Individual Talent, The Frontiers of Criticism और The Function of Criticism.
Eliot मेरे लिए अबूझ पहेली रहे. Tradition and the Individual Talent कवि, साहित्यिक परम्परा, साहित्यिक सृजन और कवि के व्यक्तित्व पर लिखा गया अब तक का सबसे मानक लेख है. जब बात समझ में नहीं आयी की कवि को साहित्यिक परम्परा के साथ चलना चाहिए या उसे अपने Individual Talent की ओर झुकना चाहिए तो यह यक्ष प्रश्न गुरुवर शंकरानन्द पालित सर के सामने उपस्थित किया।
गुरुदेव ने सरल भाषा में एक पंक्ति में पुरे लेख का सार बता दिया।
"अब बताईये की अगर ताजमहल के सामने एक झोपड़ी खड़ा कर दिया जाए तो ताजमहल की सुंदरता बनी रहेगी, घटेगी या बढ़ेगी। आप मान लीजिये की आगरा शहर के कलक्टर हैं तो क्या करेंगें।"
इस अकादमिक प्रश्न का जबाब मैंने ऐसे दिया: "मैं तत्काल इस झोपड़े को हटा दूँगा और उस आदमी को चालान कर दूंगा।"
उनका जबाब था "बिन ट्रेडिशन को समझे पढ़े Individual Talent बेकार है. ऐसी कोई भी रचना कालजयी नहीं हो सकती हैं. यह अकाल मृत्यु को प्राप्त होगी।"
सो हे नव पौध झाड़, घास पैदा करने से बेहतर है साहित्य की धारा को समझें। Eliot का लेख अंग्रेजी में दुरूह लग सकता है तो इसका हिंदी अनुवाद पढ़ें।
मेरा साहित्य कालजयी है वाली आत्ममुग्धता से निकलें।
ऐसा है की 'रेख्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब,
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था।
किताब की आधी स्कैनिंग आज संपन्न हुआ और कल उसे पूरा कर लूंगा।
नोट: अपने समय में हम भी पढ़ने लिखने में डाकू थे.
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