Thursday, October 10, 2019

#खट्टर_काका_की_डायरी_से
कोशी और गंडक नदी के बहाव क्षेत्र में निरंतर बदलाव के कारण मिथिला का एक बड़ा भूभाग सारण, बंगाल व अन्य प्रांतों में चला गया. सोनपुर के साथ भी यही हुआ. सोनपुर का एक बड़ा हिस्सा कभी मिथिला का भाग था जो गंडक के बहाव क्षेत्र में बदलाव के कारण सारण का एडमिनिस्ट्रेटिव पार्ट बना दिया गया. सोनपुर मिथिला की सीमा थी.
मिथिला के पुराने लोकगीतों पर ध्यान दीजिये जिसमें मिथिला के सीमा की चर्चा है.
"बाबा हरिहरनाथ सोनपुर में रंग लुटय" एक प्रसिद्द होली गीत है. बाबा हरिहरनाथ के मंदिर में एक शालिग्राम स्थापित हैं. किवदंती है की गंगा और गंडक के मुहान पर गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी. दोनों पशुओं ने अपने अपने इष्टदेव का स्मरण किया। हरि (विष्णु) और हर (महादेव) ने गज और ग्राह का समझौता करबाया और इस मित्रता के निमित एक मंडिल (मिथिला में मंदिर को बहुधा मंडिल कहा जाता है) हरि-हरनाथ का निर्माण कराया गया. कालक्रम में अन्य मंदिर भी बने यथा पंचदेवता मंदिर व कालीस्थान मंदिर। 1850 के दौरान एक बृद्ध गुजराती महिला संभवतः उसका नाम रानी था यहाँ रहने लगी और मंदिरों का देखरेख करती थी. सोनपुर का मेला आयोजन इसी हरिहरनाथ प्रक्षेत्र में प्रारम्भ हुआ. यह मेला पहले गंडक नदी के इस पार तिरहुत के हाजीपुर में लगता था. यह स्थिति सन 1800 तक रही. मगर कालक्रम में वह विशाल भूखंड जिस पर मेला का आयोजन हुआ करता था गंडक नदी के कटाव के कारण नदी के प्रवाह क्षेत्र में विलीन हो गया. कालांतर इसका आयोजन गंडक नदी के दूसरे किनारे पर होने लगा.
यह बातें मैं नहीं कह रहा हूँ. ब्रिटिश सरकार के गजट में इसकी चर्चा है. हैरी अबॉट के द्वारा संकलित 327 पेज की सूचनाओं को पढ़ लीजिये। जिनको मिथिला के लिंगविस्टिक और टेरिरोटिअल बाउंड्री पर शक हो वह पहले अपनी मरौसी और बपौती जमीन का नापी खाता खतियान का जानकारी रखें।

No comments:

Post a Comment