#खट्टरकाका_की_डायरी_से
आधुनिक मैथिली साहित्य के सर्वाधिक लोकप्रिय और युगान्तरकारी साहित्यकार, विशुद्ध मिथिलावादी, मिथिला पुनर्जागरण यज्ञक अग्रगामी होता व्यंग्यसम्राट प्रो. हरिमोहनझा का आज जन्मदिन है (18सितम्बर1908,जितिया दिन). मैथिल इतने कृतघ्न हैं की इन्हें पढ़ते जरूर हैं लेकिन इन्हें न कभी स्मरण करते हैं ना कभी कृतज्ञता जाहिर करते हैं.क्यों करेंगें? वह कोई वामपंथ के झण्डावदार तो थे नहीं। यदि होते तो वामपंथ का ढोलहो पीटने वाले इनके नाम पर महोत्सव करते । मगर हरिमोहन झा तो साहित्य के माध्यम से मिथिला के ध्वजावाहक का कार्य कर रहे थे. आज के छद्म मिथिलावादी क्यों उन्हें स्वीकार करें। पाखण्ड पर प्रहार करने वाले हरिमोहन झा के साहित्य में लालसलामी का गन्ध नहीं था जो बात वामपंथ के प्रचारकों को कभी अच्छा नहीं लगा क्यों की उनके आकाओं को भी हरिमोहन झा पसंद नहीं थे। जो कुछ तथाकथित दक्षिणपंथी किंवा राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक हैं वह आज भी नाबालिग और बालगोविंद ही हैं । आपको जिनका ढोल पीटना हो पीटें महोत्सव करें हरिमोहन बाबू को आप आज भी पाठक के हृदय में बसते हैं उनके जन्ममास के अवसर पर उनकी प्रथम प्रकाशित कृति 'अजीब बन्दर का आवरण प्रतिच्छवि प्रस्तुत कर रहा हूँ जो सन 1925 में दरभंगा से प्रकाशित हुआ था जब वह महज सोलह वर्ष के थे.
खट्टर काका वही थे जिन्होंने सत्तर साल पहले सनातन धर्म, सनातन ग्रन्थ और प्रथाओं का धागा खोलना शुरू कर दिया था । हरिमोहन झा आज भी उतने ही लोकप्रिय क्यों हैं? क्यों उनकी रचनाओं के पीछे आप पागल रहते हैं? क्या आप इसलिए पढ़ते हैं की उनकी रचनाएँ हास्य से सराबोर हैं और पढ़ कर आप हँसी से लोटपोट हो जाते हैं? आपको क्या लगता है की दर्शन शास्त्र का यह उद्भट विद्वान् मैथिली साहित्य एक मसखरा है जिसका उद्देश्य आपको हँसाना भर था. हरिमोहन झा एक अद्वितीय सर्जक और मूर्ति भंजक भी थे. इस अद्भुत तर्कवादी ने हरेक सिद्धांत और मान्यतों का तर्क सहित खंडन मंडन कर दिया और उनके तर्क का कोई काट नहीं था.
इस देश में मूर्खता के कारण कौन? पंडित
असली ब्राह्मण कहाँ रहते हैं? यूरोप अमेरिका में
वेदकर्ता नास्तिक थे
वेद पुराण श्रवण करने से स्त्रियों का स्वभाव खराब हो जाएगा
गीता पाठ करने से फौजदारी मामलों में बृद्धि हो जाएगी
आयुर्वेद महज काव्य है
दही चूड़ा चीनी से सांख्य दर्शन निकला
सोमरस भाँग है
भगवान् राम अस्थिर मति के दुर्बल पुरुष थे
भगवान् को पेंसन लेकर बैठ जाना चाहिए
महादेव मैथिल थे
रामायण का आदर्श चरित्र कौन? रावण
सभी देवताओं में तेज कौन? कामदेव
स्त्री जाति में सर्वश्रेष्ठ कौन? वारांगना
दर्शन शास्त्र की रचना रस्सी को देख कर हुई
स्वर्ग जाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है
उस समय भी उन्हें नास्तिक, परंपरा विरोधी, धर्मविरोधी, पश्चिमी सभ्यता का अनुगामी कह कर उन्हें प्रताड़ित किया गया था. जनवरी 1954 से नवम्बर 1954 तक मिथिला मिहिर में खट्टर काका को टारगेट कर उनको प्रताड़ित किया गया. विरोधियों के पास कोई तर्क नहीं था सिवाय यह की उनकी भावना आहत हुई है. मिथिला में धर्म और अध्यात्म को तर्कों की कसौटी पर जांचा परखा जाता रहा है. अगर सिर्फ मनोरंजन के लिए हरिमोहन झा को पढ़ते हैं तो उनको पढ़ना बंद कर दीजिये।
अगर आज हरिमोहन झा जीवित होते तो पता नहीं साहित्य के नाम पर मैथिली में जमा हो रहे कूड़े के अम्बार पर क्या सब लिखते। लंपट तत्वों से घिरे मैथिली साहित्य के मोक्ष के लिए क्या करते।
आधुनिक मैथिली साहित्य के सर्वाधिक लोकप्रिय और युगान्तरकारी साहित्यकार, विशुद्ध मिथिलावादी, मिथिला पुनर्जागरण यज्ञक अग्रगामी होता व्यंग्यसम्राट प्रो. हरिमोहनझा का आज जन्मदिन है (18सितम्बर1908,जितिया दिन). मैथिल इतने कृतघ्न हैं की इन्हें पढ़ते जरूर हैं लेकिन इन्हें न कभी स्मरण करते हैं ना कभी कृतज्ञता जाहिर करते हैं.क्यों करेंगें? वह कोई वामपंथ के झण्डावदार तो थे नहीं। यदि होते तो वामपंथ का ढोलहो पीटने वाले इनके नाम पर महोत्सव करते । मगर हरिमोहन झा तो साहित्य के माध्यम से मिथिला के ध्वजावाहक का कार्य कर रहे थे. आज के छद्म मिथिलावादी क्यों उन्हें स्वीकार करें। पाखण्ड पर प्रहार करने वाले हरिमोहन झा के साहित्य में लालसलामी का गन्ध नहीं था जो बात वामपंथ के प्रचारकों को कभी अच्छा नहीं लगा क्यों की उनके आकाओं को भी हरिमोहन झा पसंद नहीं थे। जो कुछ तथाकथित दक्षिणपंथी किंवा राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक हैं वह आज भी नाबालिग और बालगोविंद ही हैं । आपको जिनका ढोल पीटना हो पीटें महोत्सव करें हरिमोहन बाबू को आप आज भी पाठक के हृदय में बसते हैं उनके जन्ममास के अवसर पर उनकी प्रथम प्रकाशित कृति 'अजीब बन्दर का आवरण प्रतिच्छवि प्रस्तुत कर रहा हूँ जो सन 1925 में दरभंगा से प्रकाशित हुआ था जब वह महज सोलह वर्ष के थे.
खट्टर काका वही थे जिन्होंने सत्तर साल पहले सनातन धर्म, सनातन ग्रन्थ और प्रथाओं का धागा खोलना शुरू कर दिया था । हरिमोहन झा आज भी उतने ही लोकप्रिय क्यों हैं? क्यों उनकी रचनाओं के पीछे आप पागल रहते हैं? क्या आप इसलिए पढ़ते हैं की उनकी रचनाएँ हास्य से सराबोर हैं और पढ़ कर आप हँसी से लोटपोट हो जाते हैं? आपको क्या लगता है की दर्शन शास्त्र का यह उद्भट विद्वान् मैथिली साहित्य एक मसखरा है जिसका उद्देश्य आपको हँसाना भर था. हरिमोहन झा एक अद्वितीय सर्जक और मूर्ति भंजक भी थे. इस अद्भुत तर्कवादी ने हरेक सिद्धांत और मान्यतों का तर्क सहित खंडन मंडन कर दिया और उनके तर्क का कोई काट नहीं था.
इस देश में मूर्खता के कारण कौन? पंडित
असली ब्राह्मण कहाँ रहते हैं? यूरोप अमेरिका में
वेदकर्ता नास्तिक थे
वेद पुराण श्रवण करने से स्त्रियों का स्वभाव खराब हो जाएगा
गीता पाठ करने से फौजदारी मामलों में बृद्धि हो जाएगी
आयुर्वेद महज काव्य है
दही चूड़ा चीनी से सांख्य दर्शन निकला
सोमरस भाँग है
भगवान् राम अस्थिर मति के दुर्बल पुरुष थे
भगवान् को पेंसन लेकर बैठ जाना चाहिए
महादेव मैथिल थे
रामायण का आदर्श चरित्र कौन? रावण
सभी देवताओं में तेज कौन? कामदेव
स्त्री जाति में सर्वश्रेष्ठ कौन? वारांगना
दर्शन शास्त्र की रचना रस्सी को देख कर हुई
स्वर्ग जाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है
उस समय भी उन्हें नास्तिक, परंपरा विरोधी, धर्मविरोधी, पश्चिमी सभ्यता का अनुगामी कह कर उन्हें प्रताड़ित किया गया था. जनवरी 1954 से नवम्बर 1954 तक मिथिला मिहिर में खट्टर काका को टारगेट कर उनको प्रताड़ित किया गया. विरोधियों के पास कोई तर्क नहीं था सिवाय यह की उनकी भावना आहत हुई है. मिथिला में धर्म और अध्यात्म को तर्कों की कसौटी पर जांचा परखा जाता रहा है. अगर सिर्फ मनोरंजन के लिए हरिमोहन झा को पढ़ते हैं तो उनको पढ़ना बंद कर दीजिये।
अगर आज हरिमोहन झा जीवित होते तो पता नहीं साहित्य के नाम पर मैथिली में जमा हो रहे कूड़े के अम्बार पर क्या सब लिखते। लंपट तत्वों से घिरे मैथिली साहित्य के मोक्ष के लिए क्या करते।
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