यूँ बौद्धों की तरह ना कीजिये
मिथिला में बौद्ध भिक्षुओं स्थानीय लोगों के बीच जमकर खींचातानी होती थी जैसे कि आज गैर बीजेपी और बीजेपी समर्थकों के बीच बेमतलब की बतकही होती है।
यह बौद्ध भिक्षु भी चमन जी टाइप कुटिल हुआ करते थे। उदाहरण के रूप में मिथिला में बच्चों के शिक्षारम्भ के समय पंडित विद्वान बच्चों का हाथ पकड़ पर स्लेट पर आँजी का चिन्ह बनवाते थे। आँजी स्वातिक की तरह एक धार्मिक चिन्ह है जो गणेशजी की आकृति है। इसके साथ साथ सिद्धि और रस्तु लिखवाते थे।
फट से बौद्ध भिक्षुओं ने इस पर एक व्यंग बना दिया "आँजी सिद्धि रस्तु चूड़ा दही हसथु"
हसथु का मतलब हुआ दोनों हाथों से हसोथना।
अब इन बौद्ध भिक्षुओं ने हमारे भोजन के समृद्ध परंपरा पर प्रहार किया तो जवाब तो देना ही था।
यह बौद्ध भिक्षु शिक्षा का आरंभ ओम नमः सिद्धम से करते थे। मैथिलों ने भी ऐसा पैरोडी बनाया की भंते चमनजी छिलमिला गए। यह ऐसा था "ओना मासी धं गुरुजी चितंग"
फट से बौद्ध भिक्षुओं ने इस पर एक व्यंग बना दिया "आँजी सिद्धि रस्तु चूड़ा दही हसथु"
हसथु का मतलब हुआ दोनों हाथों से हसोथना।
अब इन बौद्ध भिक्षुओं ने हमारे भोजन के समृद्ध परंपरा पर प्रहार किया तो जवाब तो देना ही था।
यह बौद्ध भिक्षु शिक्षा का आरंभ ओम नमः सिद्धम से करते थे। मैथिलों ने भी ऐसा पैरोडी बनाया की भंते चमनजी छिलमिला गए। यह ऐसा था "ओना मासी धं गुरुजी चितंग"
एक थे कुमारिल भट्ट उन्हें प्रछन्न बौद्ध कहा जाता है। वह दिन में पौधों के बीच बौद्ध मठ में बुद्धिज़्म की पढ़ाई करते थे और रात में अपने घर में बुद्धिज्म के खंडन मंडन का सूत्र लिखते थे।
मैथिलों ने लड़ाई का दूसरा तरीका भी अपनाया। महात्मा बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया गया और कहीं कहीं बुद्ध की पूजा एक विशेष रीति से की जाने लगी। बतौर बुद्ध की मूर्ति पर लोग कंकड़ पत्थर फेंक कर पूजा करते थे। इसलिए बुद्ध को लोग ढेलमारा गोसाइँ भी कहते हैं और कालांतर मिथिला में ढेलमारा गोसाइँ एक मुहावरा बन गया।
उस समय की लड़ाई में तो कुछ रचनाधर्मिता भी थी और आज तो कभी रचनाधर्मिता के लिए पहचान बना चुके हुलेले हुलेले कर रहे हैं।
मोदी केदारनाथ जायें या बद्रीनाथ,आपको क्या पड़ी हुई है। राहुल गांधी भी नानी गाँव जायें किसी ने रोका है क्या।
वह तप करें फकीर बनें या पुनः प्रधानमंत्री बनें विधाता ने जो तय किया है वही होगा। आपके आप कोई दूसरा काम नहीं है? और आपको क्या लगता है कि आपके पोस्ट को विधाता पढ़ते हैं। आपका भी मन करता है तो राहुल गांधी आपका मन रखने के लिए वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश कर जायें। संविधान में मूल कर्तव्य वाला भी चैप्टर है कभी उस पर भी दया कीजिये और ये बौद्धों की तरह हरकत बन्द कीजिये।
उस समय की लड़ाई में तो कुछ रचनाधर्मिता भी थी और आज तो कभी रचनाधर्मिता के लिए पहचान बना चुके हुलेले हुलेले कर रहे हैं।
मोदी केदारनाथ जायें या बद्रीनाथ,आपको क्या पड़ी हुई है। राहुल गांधी भी नानी गाँव जायें किसी ने रोका है क्या।
वह तप करें फकीर बनें या पुनः प्रधानमंत्री बनें विधाता ने जो तय किया है वही होगा। आपके आप कोई दूसरा काम नहीं है? और आपको क्या लगता है कि आपके पोस्ट को विधाता पढ़ते हैं। आपका भी मन करता है तो राहुल गांधी आपका मन रखने के लिए वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश कर जायें। संविधान में मूल कर्तव्य वाला भी चैप्टर है कभी उस पर भी दया कीजिये और ये बौद्धों की तरह हरकत बन्द कीजिये।
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