Monday, January 10, 2022

मैथिल ब्राह्मण मे ख़ाँ सरनेमक ऐतिहासिक तथ्य, जकर इस्लाम सँ कोनो सम्बन्ध नहि छैक

मिथिला प्रत्यक्ष रूपसं कहियो मुसलमानी शासनक अधीन नहि रहल । मिथिला अपन बुद्धि बलसं एहि ठामक सनातनी परिचितिकें सुरक्षित रखलक ।जं किछु न्यून उदाहरणकें छोड़ि देल जाय तं मिथिलाक कोनो जातिमे मुसलमानी पदनाम ओ उपाधिक प्रयोग होइत देखबामे नहि अबैत अछि जेना की बंगाल अथवा नेपालमे देखबामे अबैत अछि ।मिथिलाक दिघवय मूलक किछु भूमिहार जमिन्दार मे शाही ओ किछु दुसाधमे पासवान उपनामक प्रयोग देखबामे अबैत अछि से हाल शताब्दीक विषय थिक ।

मिथिलाक ब्राह्मणमे तीन प्रकारक उपनाम देखबामे अबैत अछि । प्रथम विद्या परम्परा जन्य कुलक्रमागत उपाधि, यथा- झा, मिश्र, पाठक, आचार्य । द्वितीय राजकीय पद जन्य कुलक्रमागत उपनाम, यथा- ठाकुर, चौधरी, राय, सिंह आदि ।तृतीय थिक पूर्वकालमे कोनो विशिष्ट क्षेत्रमे उपलब्धिक हेतु प्रदत्त उपाधि। खाँओ/खान सन उपनामकें हम एही तृतीय श्रेणी मे रखैत छी जे एकटा राजकीय उपाधि छल आ जकर सम्बन्ध दण्ड अर्थात सैन्य क्षेत्रक विशिष्ट उपलब्धिसं छल ।

ईरानी ओ पठानी मुसलमानक उपनाम खाँ/खानसं मिथिलाक दू गोट मात्र ब्राह्मण वंश दिघवय नगर ओ कुजिलवारे उल्लूक मे प्रयुक्त भेनिहार खाँओ उपनामकें अभिन्न बुझनिहार लोकनिकें एतबे कहबनि जे जं मिथिलामे मुसलमान सं उपाधि प्राप्त करबाक परम्परा ओ ओकरा कौलिक उपनामक रूपमे प्रयोग करबाक विवशता रहितय तं ओइनिवार वंशक उपनाम तुगलक अथवा लोदी एवं खंडवला वंशक उपनाम शाह ओ खान रहितय । 

मिथिलामे ब्राह्मणसं भिन्नहुं विभिन्न जातिक उपनाम यथा- चौधरी, मंडल, मरड़,राउत, खर्गा, गामी, प्रधान, पंजियार, नायक, महतो, महथा, मेहतर, सहनी, गच्छदार, कारजी आदि जे भेटैत अछि से हिन्दू शासन व्यवस्था सं सम्बद्ध पदनाम थिक जे आब कौलिक भऽ गेल अछि । एहि विषयक विशेष ज्ञान वर्णरत्नाकर ओ लिखनावलीसं भेटि जा सकैत अछि । तेहनामे जं मिथिलाक कोनो ब्राह्मणेतर जातिमे कोनो मुसलमानी उपनाम देखबामे नहि अबैत अछि तं फेर सनातन परम्पराक सबसं पैघ रक्षक मानल जायवला मिथिलाक ब्राह्मण कोना कोनो मुसलमानी उपनामकें अपन माथपर सजा कऽ राखत से स्वतः ऊह्य थिक ।

मिथिलाक ब्राह्मणक उपनाम/पदनाम आदिक इतिहासकें घोंकबाक हेतु पंजीमे संरक्षित विभिन्न वंशक उतेढ़कें देखबाक आवश्यकता अछि । एहि क्रममे मिथिलाक विशिष्ट बिसइबार वंशक उतेढ़कें देखल जा सकैछ। करनात ओ ओइनिवार वंशक सेवामे रहल एहि वंशक पुरुष लोकनिक नामक संग सान्धिविग्रहिक, राजवल्लभ, पाण्डागारिक, महावार्त्तिक, भाण्डागारिक, स्थानान्तरिक, मुद्राहस्तक, महामहत्तक आदि अनेक राजकीय पदनाम सब लागल भेटैत अछि । मुदा जें कि ई वंश भूस्वामी होयबाक कारणे ठाकुर कें कौलिक उपनाम बना लेने छलाह तें दोसर कोनो पदनाम कें स्थायी नहि कयलनि । एहि वंशक चण्डेश्वरठाकुर अपन नामक संग महत्तक अथवा महथा पदनामक संग ओहिना देखल जाइत छथि जेना परवर्त्ती खंडवला कालमे राघवसिंहक समयमे कर्महे आहपुर वंशक कुलक्रमागत सेनापति लोकनिकें जखन बख्शी पदनाम भेटलनि तं तकरा अलंकरण जकां ओ लोकनि वंशानुगत प्रयोग कयलनि । मुदा अपन उपनाम झाक त्याग नहि कयलनि । यथा - बख्शी मुकुन्दझा अथवा मुकुन्दझा बख्शी ।

एहि उतेढ़ अध्ययनक क्रममे दोसर ओइनिवार वंशक उतेढ़ सेहो उनटयबाक प्रयोजन प्रतीत होइत अछि । एहि वंशक पुरुष लोकनिक संग राजपण्डित,राजा, राय, कुमर, महत्तक आदिक अतिरिक्त एकटा दुर्लभ कोटिक पदनाम नहि अपितु उपाधि भेटैत अछि । ई उपाधि भवसिंहक तृतीय पुत्र त्रिपुरसिंहक हेतु प्रयुक्त भेलनि अछि ।ई  उपाधि अछि- दुर्ज्जन राज्य खाण्डे । एकर अर्थ अछि राज्य दुर्जनक विरुद्ध खा ण्ड उठौनिहार महायोद्धा। अपन शब्दहिसं ई व्यंजित कऽ दैत अछि जे एहन दुर्लभ उपाधि कोनो महाविशिष्ट योद्धाहिकें देल जाइत छलनि आ एही खाण्डेमे निहित अछि मिथिलाक खाँओ /खान उपाधिक सूत्र ।

एहि ओइनिवार राजवंशक उतेढ़क गम्भीर अवलोकन कयला उत्तर किछु औरो महत्वपूर्ण सूचना सब भेटैत अछि।यथा पंजीमे ओइनिवार राजवंशक सिमरौनगढ़ शाखाक वंशावलीसं ज्ञात होइत अछि जे एहि शाखाक अनेक राजपुरुष लोकनिक नामक संग "खान पराक्रम "सन विरुद लागल छनि।जेना-"मुद्राहस्तक गुणीश्वर सुतो खान पराक्रम कुमर हसाइ, खान पराक्रम सुतो रामसिंह इत्यादि ।
10• की छल ई खाण्ड, तकर उत्तर चौदहम शताब्दीक आद्यमे रचित वर्णरत्नाकरक पांचम कल्लोलक प्रयाणक वर्णनामे भेटैत अछि । एहिमे छत्तीस प्रकारक दण्डायुधक एकटा प्रकारक रूपमे खण्डा/खाण्डक परिगणन भेल अछि आ एकर पांचटा प्रकार गनाओल गेल अछि ।

•ई खाण्ड मिथिलाक एतेक प्रशस्त अस्त्र छल जे बीसम शताब्दीक आरम्भिक दशकमे रासबिहारी लालदास द्वारा रचित मिथिला दर्पणमे एहि ठामक प्रचलित शस्त्रास्त्रक नाम गनयबाक क्रममे पहिल नाम अछि- खाण्ड ।

•एही खाण्डक परिचालनमे निपुणता अथवा प्रखर योद्धा लोकनिकें प्रतीकात्मक रूपमे देल जायवला विशिष्टतम दुर्लभ उपाधि छल खाण्ड जे त्रिपुरसिंहकें प्राप्त छलनि । एही खाण्डक विकृत रूप थिक खाण/खान जाहि उपाधिक संग ओइनिवार वंशक औओही समकालमे जे दोसर पुरुष देखल जाइत छथि से थिकाह आनन्द खाण । कीर्तिलताक तेसर पल्लवमे कोनो राजकीय पुरुषक नामावलीमे प्रथम नाम एही खाण उपाधिधारी आनन्दक लेल गेलनि अछि जे कीर्त्तिसिंहक मन्त्री ओ सान्धिविग्रहिक छथि आ हिनके पौरुषपर तिरहुतकें छोड़ि कीर्त्तिसिंह जौनपुर गेल छलाह ।
13•ओइनिवार कालमे दोसर एकटा खाण उपाधिधारी भेटैत छथि यशोराज खान जे विद्यापतिक उत्तर समकालिक छलाह ओ काव्य रचना सेहो करैत छलाह ।तेसर खाण उपाधिधारी भेटैत छथि एकटा औरो ब्राह्मण मजलिस खाँव जे ओइनिवार वंशक मूल शाखाक पतनक बाद सुगौना शाखाक संग रहि किछु दिन राज-काज सम्हारने रहथि ।
14•आब प्रश्न उठैत अछि जे ई खाण्ड उपाधि खाण कोना बनि गेल? एकर उत्तर शब्दक रूप परिवर्तनक इतिहास मे भेटैत अछि । अन्तमे 'ण्ड' संयुक्ताक्षरवला शब्द जखन मुखसुखक कारणे परिवर्तित होइत अछि तं तकर प्रथम चरणमे 'ण्ड'क उच्चारण 'ड़' होइत अछि आ दोसर चरणमे 'ड़' सानुनासिक 'ण'मे परिवर्तित भऽ जाइत अछि ।यथा-

भाण्ड - भाँड़ -भाण (एकटा प्रदर्श कलाक रूपमे ख्यात)
अण्ड - आँड़ -आण
गण्ड - गाँड़ -गाण 
मण्ड - माँड़ - माण 
 एही रूप परिवर्तनक कड़ीमे -
खाण्ड - खाँड़ - खाण बनब स्वाभाविक अछि ।
   मैथिली मे एहि प्रकारक असंख्य शब्द अछि । एहि हेतु महावैयाकरण पण्डित दीनबन्धुझाक मिथिला भाषा कोष देखल जा सकैत अछि जाहि मे 'ड़' ओ 'ण' दुनू पर समाप्त भेनिहार शब्द कें अभिन्न मानि दुनू विकल्प कें स्वीकार कयल गेल अछि । यथा -
फाँड़ा - फाणा 
फोंड़ा - फोणा 
अड़ाँची - अणाची 
अड़ाँच - अणाच 
खड़ाम -खणाम इत्यादि ।
मुदा ई खाण/खान उपाधिक उच्चारण मिथिलामे खाँओ /खाँव कोना भेल सेहो एकटा विचारणीय विषय थिक । राघव विजयावलीक रचयिता कृष्ण कवि अपन रचनामे मुसलमान फौजदार सरदार खानक एहि खान उपनामकें जं खाँव कहलनि अछि तं स्पष्ट थिक जे हुनक रचनाधर्मितापर  ई मिथिलाक बोलचालक प्रभाव थिक । तथापि खाण/खान सं खांव धरिक एहि यात्राक सूत्र सेहो स्थानीय परम्परामे निहित ध्वनि परिवर्तनक विशिष्ट शैलीमे भेटैत अछि । मैथिलीमे कतोक शब्दक अन्तक सानुनासिक ध्वनि 'ओ'  अथवा 'व'मे परिवर्त्तित होइत देखल जाइछ । यथा -
नाम - नांओ 
गाम - गाओ
भ्रू - भाँओ 
खड़ाम - खड़ाँओ 
  ध्वनि परिवर्तनक एहि रूपमे 'खाण'क 'खाँव/खाँओ' उच्चारण होयब सहज सम्भाव्य अछि ।
16•एहि ठाम एकटा औरो उदाहरण देब अनुपयुक्त नहि होयत । हमरा लोकनिक छतिवनय वंशक डिहवार बलभद्रसिंहझाक जे स्थान लहेरियासरायमे छनि से एकटा प्राचीन नदीक तट पर अछि जे मसानखाँओ कहबैत अछि । एहि स्थानपर नदी घुमान लेने अछि आ नदीक घुमानवला स्थान खोण/खोंन कहबैत अछि । श्मशान खोण मुखसुखक कारणे आइ मसानखाँओ कहबैत अछि ।
17•निष्कर्ष रूपमे पुनः कहि दी जे मिथिलाक मात्र दू मूलक ब्राह्मणक किछु ग्राममे उपनामक रूपमे प्रयुक्त भेनिहार खाँओ /खाँव अथवा खाँ/खान ने उपनाम थिक, ने पदनाम थिक; ई थिक विशिष्ट कोटिक दुर्लभतम उपाधि जे कोनो युगपुरुष दुर्द्धर्ष योद्धाकें भेटैत छलनि । एकर अत्यल्प उदाहरण मिथिला मे भेटैत अछि । ई उपाधि दिघवय ओ कुजिलवार वंशक कोनो योद्धाकें भेटल छलनि पश्चात  जकरा हुनक वंशज लोकनि अपन कौलिक उपनाम बना लेलनि।जं ई खान उपाधि मुसलमानी रहितय तं विभिन्न जाहिमे सत्ता-सोरहि खान उपनाम रहितय आ मिथिला मिथिला देश नहि कहा कऽ  आइ खानदेश  कहबैत रहितय ।