Wednesday, October 16, 2019


खट्टर काका की डायरी से 
पोस्ट पढ़ने से पहले आप साहित्य अकादमी के ई आमंत्रण पत्र देखते छी तब आगू बात बुझते  छी. ये आमंत्रण पत्र और एकरी भाषा साहित्य अकादमी के मैथिली कन्वेनर प्रेम्मोहन मिश्र उर्फ़ कमेस्ट्री वाले सर के लैब से निकला छी. एकरा आधुनिक मैथिली बोलते छी.

यह आमंत्रण पत्र साहित्य अकादमी का छपा हुआ है जिसे अकादमी में मैथिली के 'विद्वान' संयोजक  प्रेम मोहन मिश्र और उनके जैसे ही सोधन कुर्थी जो संयोजन समिति के सदस्य हैं ने भी इस आमंत्रण पत्र पर संस्तुति दी होगी।   

आमंत्रण पत्र को पढ़कर समझा जा सकता है की अयोग्यों के चांडाल चौकड़ी ने कैसे मैथिली पर कब्जा जमाया हुआ है.   

जब अकादमी में मैथिली के प्रवेश का प्रयत्न  हो रहा था तब मैथिली के विद्वान भाषा वैज्ञानिक डॉक्टर सुभद्र झा जो इस कमिटी के सदस्य थे ने इसका विरोध यह कहते हुए किया था की भविष्य में अयोग्य लोग मिलकर मैथिली का सत्यानाश करेंगें। बँगला के विद्वान सुनीति कुमार चटर्जी और सुकुमार सेन जो मैथिली को अकादमी में शामिल करने के पक्षधर थे ने पंडित जयकांत मिश्र व सुरेंद्र झा सुमन को संवाद भिजबाया की पहले सुभद्र झा को मनाईये क्यों की वह मैथिली को शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं. 

अंततः आदित्य नाथ झा ने सुभद्र झा से जिरह किया और कहा की अकादमी उनके विचार एक भाषा विज्ञानी के तौर पर मांग रही है ना की साहित्य के एक्सस्पर्ट के रूप में. 

 सुभद्र झा की शंका सच साबित हुई और एक दिन ऐसा भी आया जब मैथिली साहित्य व  भाषा से हजारों प्रकाश वर्ष दूर खड़े प्रेम मोहन मिश्र वीणा ठाकुर से सेटिंग गेटिंग कर अकादमी में मैथिली के प्रतिनिधि बन गए. मैथिली साहित्य के नवतुरिया छोकड़े उनसे अधिक योग्य हैं. 

लेकिन सुभद्र झा को यह इल्म नहीं था यही प्रेम मोहन मिश्र मैथिली पर आधारित भाषा विज्ञान की आजतक की सबसे अधिक दुरूह, गंभीर और शोधपरक पुस्तक The Formation of The Maithili Language के मैथिली अनुवाद करने का अकादमी का एसाइनमेंट खुद ले लेंगें। अकादमी वालों ने इस पराक्रमी विद्वान को वह एसाइनमेंट दे दिया।

सुभद्र झा अपने साथ  एक छड़ी भी रखते थे और विद्वता का दावा करने वाले अयोग्यों को हुरपेटते भी थे. सोचिये की अगर सुभद्र झा आज जीवित होते तो अकादमी वालों और इनके जैसों को मारकर तुम्बा बना देते।     

मेरे जैसे लोग यह सोचकर सन्न रह गए थे की तिकड़म के सहारे संयोजक पद हासिल करने के बाद इनका दुःसाहस इस हद तक बढ़ गया जो सुभद्र झा की पुस्तक का अनुवाद करेंगें। वह व्यक्ति जिसके लिटरेरी सेन्स नहीं है जो मैथिली ठीक से लिख नहीं सकता जिसने भाषा विज्ञान की एक पंक्ति तक नहीं पढ़ी वह एक मूर्धन्य विद्वान् शोध का श्राद्ध करेगा। उस समय उनके चमनजी टाइप भक्त अनुचर मुझसे लड़ने के लिए हरवे हथियार सहित आये थे. मैंने उन सभी को उक्त पुस्तक के पाठ सूची की एक कॉपी थमा दी की एक शब्द का अर्थ बता दो तो हम तुम्हारा जूता साफ़ करेंगें। बहरहाल वह लोग स्व थूक चाटते निकल गए.    

जिन्होंने वह पुस्तक नहीं देखी वह देख लें. अनुवाद करने के लिए आपको मैथिली भाषा का उद्भव और विकास, वैदिक संस्कृत, प्राकृत, अवहट्ट, व्याकरण, भाषा विज्ञान, ध्वनि विज्ञान, सेमेंटिक्स, फिलोलॉजी जैसे हज़ारों क्लिष्ट शब्दावलियों और ब्रांच को समझना होगा। 

डॉक्टर सुभद्र झा ने यह शोध प्रबंध तब भारत के सुप्रसिद्ध विद्वान और भाषा शास्त्री सुनीति कुमार चटर्जी के दिशा-निर्देश में लिखा था। यह पहला शोध प्रबंध था जिस पर पटना यूनिवर्सिटी ने किसी को डी लिट की उपाधि दी थी। 

एक समय ऐसा भी आया जब सुनीति बाबू ने उन्हें पढ़ाने से यह कहते हुए मना कर दिया की मैंने भाषा विज्ञान में जो कुछ भी पढ़ा था वह तुमको पढ़ा दिया है. मतलब सुभद्र झा वह थे जिनसे नॉम चोम्स्की मदद लिया करते थे.   

प्रेम मोहन मिश्र रसायन विषय के जानकार हैं मैथिली के नहीं। वह भद्र व्यक्ति जरूर हैं लेकिन मैथिली के लिए सर्वथा अयोग्य। वीणा ठाकुर के साथ निजी हित वाले समझौते के तहत वह मैथिली के प्रतिनिधि बने. पहले ही कहा की वह एक भद्र प्रकार के अयोग्य हैं और ऐसे अयोग्यों को सठ गोत्र वाले अयोग्यों द्वारा नचाना कोई कठिन बात नहीं है. 

अकादमी में वही सब तो हो रहा है. बैक डेट में पुस्तक छपती है और उसे पुरस्कार दिया जाता है. फिर कुछ लोग संदिग्ध पुरस्कृत पुस्तक को कालजयी रचना घोषित करते हुए थाल कादो में लोटने लगते हैं. शेष पाठक वर्ग सर खुजाते हुए एक दूसरे से पूछते हैं की यह पुस्तक छपी कब थी. पुरस्कार के जूरी करने वाले 
प्रेम मोहन मिश्र ने एकाधिक अवसर पर सार्वजनिक रूप से कहा की वह साहित्यिक व्यक्ति नहीं हैं  कविता उनके समझ से बाहर की बात है. लेकिन आज जब अकादमी में संयोजन में मैथिली का काव्य पाठ के माध्यम से श्राद्ध होगा तो प्रेम मोहन मिश्र एक प्रमुख कवि के रूप में रहेंगें। 

उनसे दाना पानी और खोरीश पाने वाले महानुभाव प्रेम मोहन मिश्र और उनके मण्डली के अयोग्यता को ढंकने की भले कोशिश करें इन अयोग्य लोगों की चांडाल चौकड़ी ने मैथिली के विनाश का बीड़ा उठा लिया है.