Saturday, November 11, 2017

#खट्टरकाका की डायरी से
खट्टारकका: आबह सी.सी. आई तोहर मोन किएक उतरल छौ।
सी.सी. मिश्रा: मोन इसलिए झुंझुआन और कोनादन कर रहा है कि आई मधुबनी पेंटिंग से सज्जनित मधुबनी रेलवे स्टेशन गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान स्थान बनाने से चूक गया। 7000 वर्ग फ़ीट दीवाल पर 180 कलाकारों ने दिनरात मेहनत कर मधुबनी पेंटिंग बनाया लेकिन रेलवे के हाकिम इतने ही मुर्खाधिपति थे कि उन्होंने रेकॉर्ड बनाने के अभियान की शुरुआत से पहले गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जरूरी रजिस्ट्रेशन करबाया ही नहीं था। सब उदास हैं।
खट्टर काका: हौ जी क्या करोगे उत्तर भर (दिशा) वाला कुछ अधिक ही कबिकाठी होता है। कौआ छप्पड़ पर बैठ जाएगा तो सीढ़ी उतार लेगा की सीढ़ी के विना कौआ उतरेगा कैसे। अब रेलवे का ही ले लो कभी एक समय था कि लोहना लाइन में सिग्नल हमेशा गिरा ही रहता था इसलिए किसी ने छंद रचना कर लोहना स्टेशन को मिथिला के 10 महाबुरित्व मतलब महान बाहियात चीजों में शामिल कर दिया "स्टेशन में लोहना बुरि"
लेकिन यह मधुबनी पेंटिंग कैसा होता है मैं तो मिथिला पेंटिंग जानता हूँ।
सी. सी. मिश्रा: इसे मिथिला पेंटिंग भी कहते हैं। पूरे विश्व में यह तो मधुबनी पेंटिंग के नाम से विख्यात है।
खट्टर काका: हौ जी "बाप पेट में और पुत गेल गया" वाला बात करते हो। पहले मिथिला या मधुबनी। 45 साल पहले जो जिला बृहत्तर दरभंगा से काट कर बनाया गया हो उस जिला के नाम पर तुम लोगों ने मिथिला की हजारों साल से चली आ रही लोककला जो मिथिला के सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न भाग रहा है, का नामकरण कर दिया। मिथिला की लोककला को एक जिला अपने नाम पर केवाला (रजिस्ट्री) करवा लेगा।
सी.सी. मिश्रा: कक्का एक जापानी रिसर्चर मिथिला भ्रमण में आया था उसने इस कला के बारे में विश्व को यह कहते हुए अवगत करबाया था की यह मधुबनी पेंटिंग है। आप उसके रिसर्च पर कैसे सवाल कर सकते हैं।
खट्टर काका: इ चीनी जापानी का आँख बिज्जी (नेवला) जैसा होता है बिज्जी जैसी आँख से उसने सिर्फ मधुबनी ही देखा पूरा मिथिला नहीं। शेष मिथिला में महिलाएं और ललनाएँ क्या चित्र बनाती हैं। कोई चीनी जापानी विदेशी कुछ बोल दिया वह तुम लोगों के लिए ब्रह्म लकीर हो गया। मिथिला चित्रकला क्या है यह समझने के लिए भाष्कर कुलकर्णी और उपेंद्र महारथी जैसे कला मर्मज्ञों को पढ़ो जिन्होंने अपना जीवन इस कला को सीखने समझने में लगा दिया। उपेंद्र ठाकुर को पढ़ो लक्ष्मीनाथ झा का शोध पढ़ो।
सी.सी. मिश्रा: कक्का किसी भी विषय को समझने के लिए विकिपीडिया सबसे प्रमाणित श्रोत है वहाँ भी इसे मधुबनी पेंटिंग ही कहा गया है। खैर आपको इंटरनेट समझाने का समय नहीं है। मधुबनी पेंटिंग के बारे में पहली जानकारी तीस के दशक में हुए भूकंप के दौरान हुई थी जब राहत कार्य मे जुटे अंग्रेज़ अफसरों ने घर की दीवाल पर बने चित्र देखे। आप तो सभी के योगदान को नकार देते हैं। इस चित्रकला में मधुबनी का स्वर्णिम योगदान है इसलिए मधुबनी पेंटिंग के रूप में ख्याति मिली। मधुबनी का जितवारपुर, रांटी, मंगरौनी ऐसे कितने नाम गिनाऊँ जहाँ के कलाकारों ने इस कला को ऊंचाई दी।
खट्टारकाका: हौ जी हमको भी पता है कि तुम जैसे बुद्धिबधिया को समझाने से अधिक आसान काम कलकत्ता पैदल चले जाना है। फिर भी समझा रहा हूँ क्या पता कि तुम्हारी बुद्धि जो बाम हो चली है वह रास्ते पर आ जाए। ह ह अगर मधुबनी जिला नहीं बनता तो इस कला को लोग जानते ही नहीं। अगर योगदान पर ही नामकरण होना चाहिए तो तबके रेलमंत्री ललितनारायण मिश्र ने इस कला के प्रचार प्रसार और इसे व्यापार से जोड़ने के लिए बहुत कुछ किया। आज अगर मिथिला से बाहर लोग इस कला को जानते हैं तो उनकी बदौलत। उन्होंने तो जयंती जनता एक्सप्रेस को मिथिला पेंटिंग से सजा दिया था। तब तो मैं इस कला को ललितनारायण पेंटिंग नाम रखने के लिए आंदोलन करूँगा। सुनील दत्त ने अपनी एक फ़िल्म के सेट पर मिथिला पेंटिंग सजा रखा था तब मैं इसे दत्त पेंटिंग कहूँगा।
सी.सी. मिश्रा: लेकिन वह लोग कलाकार नहीं थे। कलाकर थी गोदावरी दत्त जैसी महिलाएं और वो गाँव जिन्हें राष्ट्र जानता है।
खट्टारकाका: कलाकार तो सभी हैं और सभी कलाकारों माँ सरस्वती से आशीर्वाद के कारण ही मिथिला के इस लोककला को जीवंत कर रखा है। किसी को पुरस्कार मिला किसी को नहीं ऐसे में दूसरे का महत्व कम कहाँ हो जाता है। जिन महिलाओं ने इस कला को सदियों से इस कला को जेनेरेशन ट्रांसफर किया उनका क्या। तुम्हारे अनुसार मधुबनी के कुछ गाँव इस कला के बहुत बड़े केंद्र हैं इसलिए इसका नामकरण मधुबनी पेंटिंग सही है। तब तो दरभंगा का बरहेता, बहादुरपुर, कबिलपुर, बलभद्रपुर, खराजपुर, पनिचोभ गाँव भी इस कला का बहुत बड़ा केंद्र है तब तो इन स्थानों के नाम पर नाम होना चाहिए। तब समस्तीपुर, पूर्णिया, जनकपुर, चंपारण, दिनाजपुर वाले भी कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इस पेंटिंग का नाम अपने इलाके के नाम और करने का माँग करें क्योंकि वह स्थान भी आदिकाल से मिथिला पेंटिंग का बहुत बड़ा केंद्र रहा है। तुम लोग एक खास खोल में रहते हो और खास प्रकार के ढोल बजाते हो इसलिए तुम लोगों को दूसरे कलाकारों के बारे में जानकारी नहीं होती है जिन्होंने गुमनामी गरीबी और शोषण में जीवन बिताते हुए मिथिला पेंटिंग को जीवंत बनाए रखा। कबीरपुर गांव की गौड़ी देवी ने अपने जीवन काल में 10,000 से अधिक लड़कियों और लोगों को मिथिला पेंटिंग में दक्ष बना दिया बेचारी को जीवन में कभी न किसी स्टेज पर बुलाया गया ना ही कभी किसी सम्मान के लायक समझा गया मिथिला पेंटिंग को बेचकर मालामाल होने वाले माफिया उस का शोषण करते रहे और ऐसे ही एक दिन हाथ में कूँची लिए स्वर्ग सिधार गई।
सी. सी. मिश्रा : हां ऐसे इक्के-दुक्के हो सकते हैं जिन को उचित सम्मान नहीं मिला।
खट्टरकाका: तुम अपने सीमित ज्ञान के सहारे बकलोली कर रहे हो। बरहेता गांव में शिवा कश्यप और उसके परिवार ने गीत गोविंद पर आधारित मिथिला पेंटिंग की सीरीज चित्रित कर दिया इस परिवार ने मिथिला पेंटिंग पर दर्जनों शोधपरक पुस्तके लिखी है जाओ इन्हे पढ़ो।
सी. सी. मिश्र: अगर इसे मिथिला पेंटिंग ना कह मधुबनी पेंटिंग कहा जाए तो आपको क्या समस्या है कला तो वही रहेगी।
खट्टरकाका: यहाँ मेरे निजी विचार और समस्या महत्वपूर्ण नहीं है। मिथिला पेंटिंग को मधुबनी पेंटिंग कह प्रचारित करना मिथिला और मैथिली विरोधियों का बहुत बड़ा षडयंत्र है जिसे तुम जैसे लोग नहीं समझते हैं और न समझना चाहते हैं। मिथिला विरोधी तो अरसे से इस अभियान में लगे हैं कि जिस जिस चीज में मिथिला जुड़ा हो उसका सर्वनाश कर दो या उसका अर्थ और क्षेत्र सीमित कर दो। और इस अभियान को समर्थन और फंडिंग करती है मगध शासन और हिंदी के एजेंडा वाले। मिथिला पेंटिंग के साथ भी यही हो रहा है वैसे ही जैसे मिथिला से मिथिलांचल हो गया फिर मिथिला को काटपीट कर सीमांचल कोशिकांचल बनाया जा रहा है। वैसे ही जैसे मैथिली को खत्म करने के लिए अंगिका और बज्जिका खड़ा किया जा रहा है।
सी.सी. मिश्रा: लेकिन मधुबनी पेंटिंग के साथ ऐसा नहीं होगा।
खट्टारककाका: तुम मूर्ख और आत्ममुग्ध मैथिल हो जिसके घर में अगर पूस महिने में आग लग जाये तो तो वह आग बुझाने के बजाय हाथ सेंकना शुरू कर देगा। मैथिली में सम्मान प्राप्त हिंदी वाले वो घुन्ना महादेव प्रफुल्ल कुमार सिंह "मौन" वैशाली पेंटिंग वाला खुराफात शुरू कर चुके हैं और हिंदी मगध समर्थित अंगिका वाले मिथिला पेंटिंग को मंजूषा पेंटिंग कह एक अलग शैली का योजना बना रहे हैं। और यह आग तुम्हारे जितवारपुर, रांटी, मंगरौनी तक भी जाएगी।
सी. सी. मिश्रा: लेकिन मिथिला पेंटिंग का कोई ऐतिहासिक और साहित्यिक उल्लेख तो मिलता नहीं है।
खट्टरकाका: तुम लोग अंग्रेज़िया कॉलेजिया बाबू हो। तुम लोग बुद्धि, शिक्षा और संस्कार से इतने च्युत हो कि अगर तुम लोगों से तुम्हारा मूल- गोत्र और पुरखे का नाम पूछ दिया जाए तो दाँत निपोड़ लोगे। तुम लोग इंटरनेटिया जेनरेशन हो। पहले के समय में विवाह तय करने से पहले लड़के वाले लड़की के संबंध में पता करते थे की लड़की को लूरिभास और लिखिया पढिया आता है कि नहीं। इसका यह अर्थ होता था कि उक्त लड़की को चित्रकला और पारंपरिक गीत का ज्ञान है कि नहीं। पेंटिंग एक गृह कल आ रही है जिसके उत्पत्ति के बारे में किसी को जानकारी नहीं है किस कला को भूमि और दीवारों पर उकेरा जाता था जो प्रकृति के प्रकोप के कारण सुरक्षित नहीं रह सकी। मांगलिक अवसरों पर बनने वाला अरिपन मिथिला पेंटिंग है। 18 वी शताब्दी के कीर्तनिया नाटककार नंदीपति ने अपने कृष्णकेलिमाला नाटक में इसका वर्णन किया है। नाटक में कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर एक कुशल महिला द्वारा आंगन में कमलपत्र चित्र अंकित किए जाने का वर्णन हुआ है। रमापति के रुक्मिणीपरिनय नाटक में रुक्मणी के विवाह के समय अरिपन बनाने का प्रसंग आया है। उसी प्रकार रमापति ने मिथिला की अरिपन कला का एक विशिष्ट प्रवेध कमल पत्र अरिपन की चर्चा की है। कोहबर चित्रण भित्ति चित्र है जो मिथिला पेंटिंग है। बहुत सारे प्राचीन पांडुलिपि मिथिला चित्रकला
से सुशोभित है। इतिहासकार प्रोफेसर राधा कृष्णा चौधरी ने अपने संग्रह में छांदोग्य विवाह पद्धति नामक ग्रंथ की एक प्राचीन चित्र पांडुलिपि के होने की सूचना दी हुई है। मेरे घर में ऐसे दर्जनों प्राचीन ज्योतिष शास्त्र संबंधित पांडुलिपि हैं जिस पर मिथिला चित्रकारी देखने को मिलती है। मिथिला की संपूर्ण तंत्र पद्धति तो मिथिला पेंटिंग में छुपी हुई है। तो अब यह बताओ उस समय यह सभी चित्र क्या मधुबनी की महिलाओं ने आकर बनाया था क्या। पूर्णिया में क्या मधुबनी की महिलाएं जाकर चित्र करती थी।
सी.सी. मिश्रा: कक्का मिथिला और मैथिली के नुकसान की कीमत पर इसे मधुबनी पेंटिंग क्यों कहें।
खट्टरकाका: हौ मधुबनी वाले विशेष ज्ञानी है। मिथिला पेंटिंग को देश विदेश में बेचकर धन्ना सेठ बने माफिया नहीं चाहते हैं कि इस चित्रकला को समग्र मिथिला की कला माना जाए क्योंकि ऐसे में राज्य और केंद्र से आने वाले सहायता अनुदान का बंटवारा हो जाएगा। जिस मिथिला पेंटिंग को एक खास योजना के तहत मधुबनी पेंटिंग कहा जा रहा है उस पेंटिंग को बेच कर माफिया वारे न्यारे हो रहे हैं जबकि कलाकार बदहाली में जी रहे हैं। उनको उनके समय, कल्पनाशीलता और श्रम के एवज में दमरी तक नहीं दिया जाता है। हमारी माताएँ और बहनें आजीविका कमाने के साथ साथ कला को बचाने के लिए अपनी आँख खराब करती हैं जिनकी कला को बेच बेच कर माड़वारी व्यापारी सांढ़ हो गया है। कभी उन कलाकारों के भी हाल समाचार पूछ लो।

http://www.prabhatkhabar.com/news/the-irony/khattar-kaka-s-diary-prabhat-khabar-literature/1070981.html

#खट्टारकका की डायरी से #SIMRIYA सिमरिया महाकुंभ विमर्श

#खट्टारकका की डायरी से #SIMRIYA सिमरिया महाकुंभ विमर्श
सी.सी. मिश्रा: खट्टर काका देखिये तिरहुत परगना के सारे धर्मभीरु लोग झोला राशन पानी लेकर सिमरिया प्रस्थान कर रहे हैं. वहां महाकुंभ का मेला लगा हुआ है. लेकिन आप जैसे नास्तिक और तर्कवादी को इस हुजूम में शामिल होते देख बड़ा अटपटा लग रहा है. लाखों लोग पुण्य कमाने के नाम पर वहाँ जायेंगें और पहले से प्रदूषित गंगा को फिर से प्रदूषित करेंगें। देखिये संत रविदास बहुत पहले कह गए थे की गंगा स्नान कर क्या होगा मन चंगा तो कठौती में गंगा।
खट्टार काका: हौ जिस भूमि पर जनक, याज्ञवल्क्य, भुवि, गौतम, कात्यायनी, गार्गी, भारती, वाचस्पति, कुमारिल जैसे दिव्य पुरुष और महिलाएं हुई जिस भूमि पर शुक्लयजुर्वेद, शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यकोपनिषद्, छान्दोग्य उपनिषद, ईशावास्योपनिषद् जैसे अंसख्य ग्रन्थ लिखे गए, जिस भूमि के सिद्ध पुरुष उदयनाचार्य ने ईश्वर को चुनौती दी शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया और स्वामी दयानन्द सरस्वती का वाक् बंधन कर दिया वहाँ कोई धर्मभीरु नहीं होता है. मिथिला में सभी तार्किक, नैयायिक और मीमांसक होते हैं. और अगर संत रविदास गंगा को कठौती में डाल गए तो मिथिला में पुरातन काल से एक कहावत चली आ रही है आलसी लेखे गंगा बड़ी दूर। तुम लोग आधुनिक काल के अँग्रेज़िया छौड़ा हो गोआ और मुंबई समुद्र नहाने और सैर सपाटा करने जाओगे लेकिन गंगा स्नान का नाम आते ही मैकाले से वादरायण संबंध स्थापित कर लेते हो। यहां तिरहुत क्या समस्त देश से श्रद्धालु आ रहे हैं।
सी. सी. झा: लेकिन कक्का देखिये अब गंगा कितना प्रदूषित हो चुका है आस्था कैसे जगेगी। लोग गंगा के किनारे महीना दिन कल्पवास कर पता नहीं क्या पुण्य कमाते हैं।
खटटर काका: गंगा को प्रदूषित करने वाले तुम्हीं जैसे लोग हैं। मिथिला में नदी की पूजा होती है. कभी विद्यापति के काव्य को पढ़ो तुम्हें गंगा संरक्षण का सूत्र उनके काव्य में मिल जाएगा। वैसे तुम्हारी पितामही पूजा पाठ में अछिंजल के रूप में गंगा जल ही प्रयुक्त करती हैं मिनरल जल नहीं। हौ बौआ मरते समय में मुँह में गंगाजल ही डाला जाता है मिनरल नहीं। कहियो भारत के संस्कृति के विलक्षणता आ वैज्ञानिकता के बोध रहितौ तखन ने बुझितहक। ऋषि मुनियों ने महाकुम्भ, अर्धकुम्भ, कल्पवास को इसी प्रयोजन से बनाया की साल में देश के सभी हिस्से के लोग एक स्थान पर एकत्र हो सकें जिससे भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक एकता बनी रहे और समागम होता रहे।
सी.सी. मिश्रा : लेकिन सिमरिया में महाकुम्भ मैंने तो कभी नहीं सुना न कभी शास्त्र में पढ़ा। यहां तक की बेगूसराय जिला प्रशासन ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपा है उसने कहा गया है कि सिमरिया में कुंभ मनाने का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। अपने मिथिला से चुने मदन मोहन झा जो सरकार में मंत्री रहे हैं उन्होंने भी सदन को यही बात बताई थी कि सिमरिया में कुंभ बनाने का कोई ऐतिहासिक साक्षी नहीं मिला है। इसी प्रकार का प्रश्न आचार्य किशोर कुणाल ने भी उपस्थित किया था।
खटटर काका: तुम बुरिराज हो अरे साओन जनमल गीदड़ आ भादो आयल बाढ़ि त कहलकै जे एहन बाढ़ि कहियो नै देखल (सावन में पैदा हुआ गीदड़ जब भादव महीने में बाढ़ देखता है तो कहता है की ऐसी बाढ़ उसने कभी देखी ही नहीं).
कहलकै जे "बिलाड़ि गेल भाँटा बाड़ी त कहलकैक जे यैह वृन्दावन छैक" (बिल्ली जब बैगन के खेत में गयी तो कहा की वृंदावन यही है) हमलोगों ने शिक्षारंभ बालोहं जगदानन्द से किया और तुम लोगों की शुरुवात बाबा ब्लैक शीप से हुई. हम लोगों ने ग से गणेश जाना और तुम लोगों को ग से गधा. तो जिसके शिक्षा का नींव भेंड़ और गर्दभ गान से शुरू हुआ वह क्या शास्त्रों का मनन करेगा। अब अगर हाकिम और नेता ही हमारे शास्त्रों के टीकाकार बन जाएंगे तब तो कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय और लगमा गांव के संस्कृत गुरुकुल सहित मिथिला के समस्त विद्वानों को वानप्रस्थ आश्रम चला जाना चाहिए। तुम्हारे उस मूर्ख हाकिम को तो यह भी नहीं पता होगा कि सिमरिया में गंगा नदी और वाया नदी का संगम है। जहां तक रही तुम्हारे उस आचार्य की बात तो उनकी कुल उपलब्धि तो यही रहेगी उनके कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहने के दौरान महाकवि विद्यापति की हस्तलिखित पांडुलिपि चोरी हो गई जिसका आज तक कोई थाह पता नहीं चला।
सी.सी. मिश्रा : लेकिन शास्त्रों में सिमरिया में कुम्भ होने का कहाँ उल्लेख है।
खटटर काका: शास्त्रों में शाल्मली वन की चर्चा है जहाँ बृहस्पति के तुला राशि में गोचर के दौरान पूर्ण कुम्भ लगता था. हजारों साल पहले सिमरिया स्थान में पूर्णकुम्भ का आयोजन होता था जो परम्परा अज्ञात कारणों से टूट गयी. शाल्मली वन का अर्थ होता है सेमल का वन. यही शाल्मली घिसते सिमरिया बन गया।
रुद्रयामलोक्तामृतिकरणप्रयोग के श्लोक को पढ़ो "धनुराशिस्थिते भानौ गंगासागरसङ्गमे, कुम्भ राशौ तु कावेययां तुलाके शाल्मलीवने"
सूर्य, चंद्र, गुरु के अनुकूल खौगोलिक स्थिति के अनुसार सिंह राशि में नासिक, मिथुन में जग्गनाथ ओडिशा, मीन राशि में कामाख्या (असम), धनु राशि में गंगा सागर (बंगाल), कुम्भ राशि में कुम्भकोंणम अर्थात तमिलनाडु, तुला राशि में शाल्मली वन अर्थात सिमरिया (मिथिला), वृश्चिक राशि में कुरुक्षेत्र (हरियाणा), कर्क राशि में द्वारिका (गुजरात), कन्या राशि में रामेश्वरम (तमिलनाडु), तदुपरि हरिद्वार, प्रयाग और उज्जैन में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है।
सी.सी. मिश्रा: कक्का आप आशु कवि की तरह तत्काल किसी श्लोक की रचना कर देते हैं। आप तो यह भी कह सकते हैं कि समुद्र मंथन भी मिथिला में ही हुआ था।
खट्टर काका: तब तुम वाल्मीकि रामायण और रुद्रामलोकत्तामृतिकरणप्रयोग का अध्ययन करो। इसके एक श्लोक में स्पष्ट लिखा है जिसका हिंदी अनुवाद तुम्हें बता देता हूं क्योंकि पूर्वजन्म के पाप के कारण तुमने देवभाषा पढ़ी नहीं सो समझोगे भी नहीं। देवराज इंद्र द्वारा सुनी हुई कथा को धनुष यज्ञ के अवसर पर जनकपुर जाते हुए गंगा पार करने के पश्चात महामुनि विश्वामित्र भगवान श्रीराम को सुनाते हुए कहते हैं कि प्राचीन काल में प्रयोग में इस तिरहूत क्षेत्र में हिमालय पर यंत्र समुद्र का विस्तार था उसी के उत्तर तट पर कैलाश से थोड़ी दूर पर गंगा सागर का संगम तथा वही दक्षिण तट पर मंदार पर्वत भी था इसी स्थान पर अजरत्व अमरत्व एवम आरोग्य लाभ के लिए देवता एवं राक्षसों ने मिलकर बासुकी को डोरी कश्यप के पीठ पर स्थित कर मंदार पर्वत को पत्नी बनाकर समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त किया था यह स्थान संप्रति बिहार प्रांत के बेगूसराय जिला मुख्यालय से नेतृत्व कोण में अवस्थित शाल्मली वन सिमरिया घाट सिद्ध होता है।
सी.सी. मिश्रा: अति विलक्षण खट्टर काका भाँग के तरंग में अब आप मिथिला में समुद्र भी ला दिए।
खट्टर काका: रुद्रयामलोकत्तामृतिकरणप्रयोग को फिर से पढ़ो सागर था या नहीं तुम्हें पता चल जाएगा तुम्हें अभी अपने अज्ञानता के डबरा से निकलने में काफी समय लगेगा। अब तो भूगोल शास्त्रियों ने भी समुद्र के अस्तित्व को माना है। क्योंकि तुम लोग मेष बुद्धि वाले हो किसी बात को तब तक नहीं मानोगे जब तक पश्चिम का कोई विद्वान ऐसा कह ना दे यह अलग बात है की पश्चिम के विद्वान भारतीय ग्रंथों से ही सब कुछ चुरा कर ले गए।
सी.सी. मिश्रा: खट्टर काका मैं आधुनिक और प्रगतिशील महफिल हूं मैं बिना सबूत के कुछ भी नहीं मानता।
खट्टर काका: धर्मशास्त्र में समुद्र मंथन के जिस भौगोलिक परिवेश सीमा चौहद्दी की चर्चा की गई है उसको आज भी परखा जा सकता है। वर्तमान समय में सिमरिया धाम के दक्षिण भूभाग के बौंसी क्षेत्र में मंदार पर्वत है। संथाल परगना के दारुक वन में वासुकी नाग द्वारा स्थापित बासुकिनाथ महादेव है। जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान किया था तब विष के प्रभाव से व्याकुल हो चले शिव ने विश्व के प्रभाव को कम करने के लिए जनकपुर से 50 मील उत्तर जूटा पोखरि नाम से प्रसिद्ध पुष्करणी मैं स्नान और विश्राम किया था। इसी मिथिला भूमि पर भगवान शिव ने हलाहल को पीकर विश्व की रक्षा की थी शायद इसी विष का असर है की मैथिली जटिल और कभी-कभी कुटिल भी होते हैं।
यह भी जान लो कि जब समुद्र मंथन से अमृत निकला था और राक्षस उस अमृत घट को देवता से छीनना चाहते थे तो 11 वर्षों तक विष्णु विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए और छिपते हुए तक इस अमृत घट की रक्षा की और 12 वें वर्ष में इसी सिमरिया स्थान में मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को दीपावली के दिन अमृत पान करवाया था।
सी.सी. मिश्रा: तो इसका क्या अर्थ आप प्रशासन और सरकार के विद्वान अधिकारियों के रिपोर्ट को खारिज करते हैं।
खट्टर काका: औ जी मेरा बस चले तो मैं इन अधिकारियों के साथ-साथ नेताओं के बुद्धि का उपचार कर दूं। सिमरिया घाट में हजारों साल से कार्तिक महीने में श्रद्धालु कल्पवास करते हैं जब सूर्य तुला राशि में होते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान अमृत तभी निकला था जब सूर्य तुला राशि में थे इसलिए इस समिति में गंगा नदी के सिमरिया घाट पर लोग कार्तिक महीने में 1 महीना तक कल्पवास करते हैं गंगाजल को अमृत मान कर सेवन करते हैं। तुम्हारे विद्वान अधिकारी और नेताओं ने इस तथ्य के जांच पड़ताल की कोशिश की कि आखिर कार्तिक महीना में लोग सिमरिया घाट में ही कल्पवास क्यों करते हैं किसी अन्य जगह पर क्यों नहीं। यह प्रमाणित करता है कि सिमरिया में कुंभ का आयोजन होता था। चैत महीने में विशाखा नक्षत्र वारुणी योग होता है जिस युग में गंगा स्नान को मोक्षदायिनी माना जाता है और जिस स्थान पर यह मेला लगता था उस स्थान का नाम कभी वारुणी था जो आज का बरौनी है। तुम्हारे विद्वान अधिकारी और मदन मोहन झा जैसे नेता के पास ना इतना समय है और नहीं बुद्धि कि वह इन बातों का विश्लेषण करें।
सी.सी. मिश्रा: मुझे आपकी बात थोड़ी थोड़ी समझ में आ रही है।
खट्टर काका: तुम्हें थोड़ी-थोड़ी बात समझ में आ रही है यह शुभ संकेत है। जो व्यक्ति और समाज अपने उद्दात धार्मिक, सांस्कृतिक और विद्वत परंपरा और इतिहास से अपरिचित हो वह ऐसे ही मायाजाल में भटकता रहता है। ईश्वर को धन्यवाद दो कि तुम्हारा जन्म मिथिला में हुआ है। मिथिला क्षेत्र वैकुंठ लोक के समान है अतः यहां वास करने से मनुष्य जीवन मुक्त होता है यहां की यात्रा परम पूज्य पद कही गई है काशी में 1 वर्ष वास से एवं प्रयाग तथा पुष्कर में 3 वर्षों तक वास से जो फल मिलता है वही फल मिथिला में एक दिन वास मात्र से प्राप्त होता है अयोध्या के समान फल देने वाली मिथिला पुरी है। यामलसारोद्धर के मिथिला खंड में पढ़ो बृहद विष्णु पुराण का अध्ययन करो। ईश्वर की आराधना करो कि कि तुम्हें अपनी भूमि में पूर्ण कुंभ स्नान करने का शुभ अवसर मिल रहा है।
और जाते जाते मेरे भाँग का झोला आँगन से ले आयो। मुफ्त में इतना ज्ञान प्राप्त कर लिया कुछ सेवा कर के जाओ.
नोट यह सब भांग के तरंग में लिखा गया अतः किसी टंकण अशुद्धि के लिए खट्टर काका जिम्मेदार नहीं हैं। क्योंकि इस पोस्ट का संबंध मेरे विद्वान मित्र अजीत भारती के गृह क्षेत्र से है इसलिए वह भी इसे पढें