Saturday, November 11, 2017

#खट्टारकका की डायरी से #SIMRIYA सिमरिया महाकुंभ विमर्श

#खट्टारकका की डायरी से #SIMRIYA सिमरिया महाकुंभ विमर्श
सी.सी. मिश्रा: खट्टर काका देखिये तिरहुत परगना के सारे धर्मभीरु लोग झोला राशन पानी लेकर सिमरिया प्रस्थान कर रहे हैं. वहां महाकुंभ का मेला लगा हुआ है. लेकिन आप जैसे नास्तिक और तर्कवादी को इस हुजूम में शामिल होते देख बड़ा अटपटा लग रहा है. लाखों लोग पुण्य कमाने के नाम पर वहाँ जायेंगें और पहले से प्रदूषित गंगा को फिर से प्रदूषित करेंगें। देखिये संत रविदास बहुत पहले कह गए थे की गंगा स्नान कर क्या होगा मन चंगा तो कठौती में गंगा।
खट्टार काका: हौ जिस भूमि पर जनक, याज्ञवल्क्य, भुवि, गौतम, कात्यायनी, गार्गी, भारती, वाचस्पति, कुमारिल जैसे दिव्य पुरुष और महिलाएं हुई जिस भूमि पर शुक्लयजुर्वेद, शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यकोपनिषद्, छान्दोग्य उपनिषद, ईशावास्योपनिषद् जैसे अंसख्य ग्रन्थ लिखे गए, जिस भूमि के सिद्ध पुरुष उदयनाचार्य ने ईश्वर को चुनौती दी शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया और स्वामी दयानन्द सरस्वती का वाक् बंधन कर दिया वहाँ कोई धर्मभीरु नहीं होता है. मिथिला में सभी तार्किक, नैयायिक और मीमांसक होते हैं. और अगर संत रविदास गंगा को कठौती में डाल गए तो मिथिला में पुरातन काल से एक कहावत चली आ रही है आलसी लेखे गंगा बड़ी दूर। तुम लोग आधुनिक काल के अँग्रेज़िया छौड़ा हो गोआ और मुंबई समुद्र नहाने और सैर सपाटा करने जाओगे लेकिन गंगा स्नान का नाम आते ही मैकाले से वादरायण संबंध स्थापित कर लेते हो। यहां तिरहुत क्या समस्त देश से श्रद्धालु आ रहे हैं।
सी. सी. झा: लेकिन कक्का देखिये अब गंगा कितना प्रदूषित हो चुका है आस्था कैसे जगेगी। लोग गंगा के किनारे महीना दिन कल्पवास कर पता नहीं क्या पुण्य कमाते हैं।
खटटर काका: गंगा को प्रदूषित करने वाले तुम्हीं जैसे लोग हैं। मिथिला में नदी की पूजा होती है. कभी विद्यापति के काव्य को पढ़ो तुम्हें गंगा संरक्षण का सूत्र उनके काव्य में मिल जाएगा। वैसे तुम्हारी पितामही पूजा पाठ में अछिंजल के रूप में गंगा जल ही प्रयुक्त करती हैं मिनरल जल नहीं। हौ बौआ मरते समय में मुँह में गंगाजल ही डाला जाता है मिनरल नहीं। कहियो भारत के संस्कृति के विलक्षणता आ वैज्ञानिकता के बोध रहितौ तखन ने बुझितहक। ऋषि मुनियों ने महाकुम्भ, अर्धकुम्भ, कल्पवास को इसी प्रयोजन से बनाया की साल में देश के सभी हिस्से के लोग एक स्थान पर एकत्र हो सकें जिससे भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक एकता बनी रहे और समागम होता रहे।
सी.सी. मिश्रा : लेकिन सिमरिया में महाकुम्भ मैंने तो कभी नहीं सुना न कभी शास्त्र में पढ़ा। यहां तक की बेगूसराय जिला प्रशासन ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपा है उसने कहा गया है कि सिमरिया में कुंभ मनाने का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। अपने मिथिला से चुने मदन मोहन झा जो सरकार में मंत्री रहे हैं उन्होंने भी सदन को यही बात बताई थी कि सिमरिया में कुंभ बनाने का कोई ऐतिहासिक साक्षी नहीं मिला है। इसी प्रकार का प्रश्न आचार्य किशोर कुणाल ने भी उपस्थित किया था।
खटटर काका: तुम बुरिराज हो अरे साओन जनमल गीदड़ आ भादो आयल बाढ़ि त कहलकै जे एहन बाढ़ि कहियो नै देखल (सावन में पैदा हुआ गीदड़ जब भादव महीने में बाढ़ देखता है तो कहता है की ऐसी बाढ़ उसने कभी देखी ही नहीं).
कहलकै जे "बिलाड़ि गेल भाँटा बाड़ी त कहलकैक जे यैह वृन्दावन छैक" (बिल्ली जब बैगन के खेत में गयी तो कहा की वृंदावन यही है) हमलोगों ने शिक्षारंभ बालोहं जगदानन्द से किया और तुम लोगों की शुरुवात बाबा ब्लैक शीप से हुई. हम लोगों ने ग से गणेश जाना और तुम लोगों को ग से गधा. तो जिसके शिक्षा का नींव भेंड़ और गर्दभ गान से शुरू हुआ वह क्या शास्त्रों का मनन करेगा। अब अगर हाकिम और नेता ही हमारे शास्त्रों के टीकाकार बन जाएंगे तब तो कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय और लगमा गांव के संस्कृत गुरुकुल सहित मिथिला के समस्त विद्वानों को वानप्रस्थ आश्रम चला जाना चाहिए। तुम्हारे उस मूर्ख हाकिम को तो यह भी नहीं पता होगा कि सिमरिया में गंगा नदी और वाया नदी का संगम है। जहां तक रही तुम्हारे उस आचार्य की बात तो उनकी कुल उपलब्धि तो यही रहेगी उनके कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहने के दौरान महाकवि विद्यापति की हस्तलिखित पांडुलिपि चोरी हो गई जिसका आज तक कोई थाह पता नहीं चला।
सी.सी. मिश्रा : लेकिन शास्त्रों में सिमरिया में कुम्भ होने का कहाँ उल्लेख है।
खटटर काका: शास्त्रों में शाल्मली वन की चर्चा है जहाँ बृहस्पति के तुला राशि में गोचर के दौरान पूर्ण कुम्भ लगता था. हजारों साल पहले सिमरिया स्थान में पूर्णकुम्भ का आयोजन होता था जो परम्परा अज्ञात कारणों से टूट गयी. शाल्मली वन का अर्थ होता है सेमल का वन. यही शाल्मली घिसते सिमरिया बन गया।
रुद्रयामलोक्तामृतिकरणप्रयोग के श्लोक को पढ़ो "धनुराशिस्थिते भानौ गंगासागरसङ्गमे, कुम्भ राशौ तु कावेययां तुलाके शाल्मलीवने"
सूर्य, चंद्र, गुरु के अनुकूल खौगोलिक स्थिति के अनुसार सिंह राशि में नासिक, मिथुन में जग्गनाथ ओडिशा, मीन राशि में कामाख्या (असम), धनु राशि में गंगा सागर (बंगाल), कुम्भ राशि में कुम्भकोंणम अर्थात तमिलनाडु, तुला राशि में शाल्मली वन अर्थात सिमरिया (मिथिला), वृश्चिक राशि में कुरुक्षेत्र (हरियाणा), कर्क राशि में द्वारिका (गुजरात), कन्या राशि में रामेश्वरम (तमिलनाडु), तदुपरि हरिद्वार, प्रयाग और उज्जैन में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है।
सी.सी. मिश्रा: कक्का आप आशु कवि की तरह तत्काल किसी श्लोक की रचना कर देते हैं। आप तो यह भी कह सकते हैं कि समुद्र मंथन भी मिथिला में ही हुआ था।
खट्टर काका: तब तुम वाल्मीकि रामायण और रुद्रामलोकत्तामृतिकरणप्रयोग का अध्ययन करो। इसके एक श्लोक में स्पष्ट लिखा है जिसका हिंदी अनुवाद तुम्हें बता देता हूं क्योंकि पूर्वजन्म के पाप के कारण तुमने देवभाषा पढ़ी नहीं सो समझोगे भी नहीं। देवराज इंद्र द्वारा सुनी हुई कथा को धनुष यज्ञ के अवसर पर जनकपुर जाते हुए गंगा पार करने के पश्चात महामुनि विश्वामित्र भगवान श्रीराम को सुनाते हुए कहते हैं कि प्राचीन काल में प्रयोग में इस तिरहूत क्षेत्र में हिमालय पर यंत्र समुद्र का विस्तार था उसी के उत्तर तट पर कैलाश से थोड़ी दूर पर गंगा सागर का संगम तथा वही दक्षिण तट पर मंदार पर्वत भी था इसी स्थान पर अजरत्व अमरत्व एवम आरोग्य लाभ के लिए देवता एवं राक्षसों ने मिलकर बासुकी को डोरी कश्यप के पीठ पर स्थित कर मंदार पर्वत को पत्नी बनाकर समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त किया था यह स्थान संप्रति बिहार प्रांत के बेगूसराय जिला मुख्यालय से नेतृत्व कोण में अवस्थित शाल्मली वन सिमरिया घाट सिद्ध होता है।
सी.सी. मिश्रा: अति विलक्षण खट्टर काका भाँग के तरंग में अब आप मिथिला में समुद्र भी ला दिए।
खट्टर काका: रुद्रयामलोकत्तामृतिकरणप्रयोग को फिर से पढ़ो सागर था या नहीं तुम्हें पता चल जाएगा तुम्हें अभी अपने अज्ञानता के डबरा से निकलने में काफी समय लगेगा। अब तो भूगोल शास्त्रियों ने भी समुद्र के अस्तित्व को माना है। क्योंकि तुम लोग मेष बुद्धि वाले हो किसी बात को तब तक नहीं मानोगे जब तक पश्चिम का कोई विद्वान ऐसा कह ना दे यह अलग बात है की पश्चिम के विद्वान भारतीय ग्रंथों से ही सब कुछ चुरा कर ले गए।
सी.सी. मिश्रा: खट्टर काका मैं आधुनिक और प्रगतिशील महफिल हूं मैं बिना सबूत के कुछ भी नहीं मानता।
खट्टर काका: धर्मशास्त्र में समुद्र मंथन के जिस भौगोलिक परिवेश सीमा चौहद्दी की चर्चा की गई है उसको आज भी परखा जा सकता है। वर्तमान समय में सिमरिया धाम के दक्षिण भूभाग के बौंसी क्षेत्र में मंदार पर्वत है। संथाल परगना के दारुक वन में वासुकी नाग द्वारा स्थापित बासुकिनाथ महादेव है। जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान किया था तब विष के प्रभाव से व्याकुल हो चले शिव ने विश्व के प्रभाव को कम करने के लिए जनकपुर से 50 मील उत्तर जूटा पोखरि नाम से प्रसिद्ध पुष्करणी मैं स्नान और विश्राम किया था। इसी मिथिला भूमि पर भगवान शिव ने हलाहल को पीकर विश्व की रक्षा की थी शायद इसी विष का असर है की मैथिली जटिल और कभी-कभी कुटिल भी होते हैं।
यह भी जान लो कि जब समुद्र मंथन से अमृत निकला था और राक्षस उस अमृत घट को देवता से छीनना चाहते थे तो 11 वर्षों तक विष्णु विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए और छिपते हुए तक इस अमृत घट की रक्षा की और 12 वें वर्ष में इसी सिमरिया स्थान में मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को दीपावली के दिन अमृत पान करवाया था।
सी.सी. मिश्रा: तो इसका क्या अर्थ आप प्रशासन और सरकार के विद्वान अधिकारियों के रिपोर्ट को खारिज करते हैं।
खट्टर काका: औ जी मेरा बस चले तो मैं इन अधिकारियों के साथ-साथ नेताओं के बुद्धि का उपचार कर दूं। सिमरिया घाट में हजारों साल से कार्तिक महीने में श्रद्धालु कल्पवास करते हैं जब सूर्य तुला राशि में होते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान अमृत तभी निकला था जब सूर्य तुला राशि में थे इसलिए इस समिति में गंगा नदी के सिमरिया घाट पर लोग कार्तिक महीने में 1 महीना तक कल्पवास करते हैं गंगाजल को अमृत मान कर सेवन करते हैं। तुम्हारे विद्वान अधिकारी और नेताओं ने इस तथ्य के जांच पड़ताल की कोशिश की कि आखिर कार्तिक महीना में लोग सिमरिया घाट में ही कल्पवास क्यों करते हैं किसी अन्य जगह पर क्यों नहीं। यह प्रमाणित करता है कि सिमरिया में कुंभ का आयोजन होता था। चैत महीने में विशाखा नक्षत्र वारुणी योग होता है जिस युग में गंगा स्नान को मोक्षदायिनी माना जाता है और जिस स्थान पर यह मेला लगता था उस स्थान का नाम कभी वारुणी था जो आज का बरौनी है। तुम्हारे विद्वान अधिकारी और मदन मोहन झा जैसे नेता के पास ना इतना समय है और नहीं बुद्धि कि वह इन बातों का विश्लेषण करें।
सी.सी. मिश्रा: मुझे आपकी बात थोड़ी थोड़ी समझ में आ रही है।
खट्टर काका: तुम्हें थोड़ी-थोड़ी बात समझ में आ रही है यह शुभ संकेत है। जो व्यक्ति और समाज अपने उद्दात धार्मिक, सांस्कृतिक और विद्वत परंपरा और इतिहास से अपरिचित हो वह ऐसे ही मायाजाल में भटकता रहता है। ईश्वर को धन्यवाद दो कि तुम्हारा जन्म मिथिला में हुआ है। मिथिला क्षेत्र वैकुंठ लोक के समान है अतः यहां वास करने से मनुष्य जीवन मुक्त होता है यहां की यात्रा परम पूज्य पद कही गई है काशी में 1 वर्ष वास से एवं प्रयाग तथा पुष्कर में 3 वर्षों तक वास से जो फल मिलता है वही फल मिथिला में एक दिन वास मात्र से प्राप्त होता है अयोध्या के समान फल देने वाली मिथिला पुरी है। यामलसारोद्धर के मिथिला खंड में पढ़ो बृहद विष्णु पुराण का अध्ययन करो। ईश्वर की आराधना करो कि कि तुम्हें अपनी भूमि में पूर्ण कुंभ स्नान करने का शुभ अवसर मिल रहा है।
और जाते जाते मेरे भाँग का झोला आँगन से ले आयो। मुफ्त में इतना ज्ञान प्राप्त कर लिया कुछ सेवा कर के जाओ.
नोट यह सब भांग के तरंग में लिखा गया अतः किसी टंकण अशुद्धि के लिए खट्टर काका जिम्मेदार नहीं हैं। क्योंकि इस पोस्ट का संबंध मेरे विद्वान मित्र अजीत भारती के गृह क्षेत्र से है इसलिए वह भी इसे पढें

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