डिस्क्लेमर: अख़बार कतरन मेरे बाबूजी के निजी आर्काइव की है. इस पर अपने चौर्य प्रतिभा मत दिखाइयेगा
खट्टर काका की डायरी से
1954 के अख़बार के कतरनों को सामने रखते हुए मैं यह जानकारी लिख रहा हूँ जबकि मिथिला में हरेक साल की भाँति फिर से बाढ़ ने तांडव मचाना शुरू कर दिया है. लेकिन इस बार की ख़ास बात यह है की वर्त्तमान मिथिला की राजनीति के दो विद्रूप चेहरे दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद व उनके प्रतिद्वंदी और सांसद बनने को लालायित संजय कुमार झा दिल्ली में दरभंगा से हवाईसेवा शुरू करवाने की लॉबिंग कर रहे हैं. बाढ़ विकट स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार को इनके आग्रह मान कर तत्काल हवाईसेवा शुरू कर देनी चाहिए कम से कम लोग अपना जान माल, जानवर को लेकर दूसरे जगह तो जा सकें। वैसे एक महीना पहले इन दोनों हास्य कलाकारों ने अपने भक्त पत्रकारों की मदद से दरभंगा में एयरपोर्ट के लिए MOU हस्ताक्षर हो गया की खबर छपवा दी. उन्हें लगता है इसके सहारे वह 2019 का चुनाव जीत लेंगें। खैर हम लोगों ने कोदो दान देकर गुरु से शिक्षा अर्जित नहीं की थी.
मूल विषय पर आईये मिथिला में बाढ़, सुखाड़ और अगलगी कोई खबर नहीं है. खबर 1954 के मिथिला मिहिर समाचार पत्र के अंकों में है. स्वतन्त्रता के कुछेक दशक पूर्व कोशी की विभीषिका ने मिथिला को दो भागों में विभाजित कर दिया था. रेल और सड़क मार्ग ध्वस्त हो गए. लेकिन सियासतदानों ने राजनितिक साजिश के तहत मिथिला को विभाजित रहने दिया।
मिथिला के लोगों को अपने subaltern इतिहास की खोज करनी चाहिए वरना आप मिथिला के उस रहमान मियां के बारे में कभी नहीं जान पायेंगें रहमान मियाँ का जन्मभूमि कर्मभूमि था वहां के लोगों को भी रहमान मियाँ के बारे में पता नहीं होगा जिनकी किताब "कोशी का तूफ़ान उर्फ़ अकाल का हाहाकार" को कभी ब्रिटिश सरकार ने 1940 के दौरान प्रतिबंधित कर दिया था. सरौती घोघरडीहा जो यह इसलिए की पेम्फलेट में एक कविता थी दौड़ू दौड़ू औ सरकार परजा सब जे डूबि रहल अछि कोशी के मझधार।" रहमान मियाँ ट्रेन में पाचक बेचते थे अपनी पेम्फलेटनुमा पुस्तक भी बेचते थे और मिथिला के प्रति फिरंगी सरकार की उदासीनता के खिलाफ आवाज भी उठाते थे. बाद में एक ब्रिटिश वायसराय ने कोशी क्षेत्र का कभी दौरा किया ब्रिटिश सरकार को लोगों ने असीम कष्ट का एहसास हुआ. डिजास्टर फंड से कोशी पर बाँध बनाने के लिए रकम की व्यवस्था हुई. लेकिन तब तक देश आजाद हो चुका था. नेहरूजी इस आजाद भारत के नए निजाम बने. कोसी के लिए निर्गत पैसों को पंजाब में भाकड़ा नाँगल डैम बनाने के लिए ट्रांसफर कर दिया गया. लोगों ने काफी हल्ला मचाया तो सरकार की तरफ से टका जबाब आया की खुद ही श्रमदान कर डैम बना लें इससे सरकार के पैसे भी बचेंगें. यह आदेश नेहरूजी का था जिसे तत्कालीन योजना मंत्री गुलजारीलाल नंदा ने मिथिला के लोगों को तामिला करवाया। अगर 15 हजार लोग श्रमदान करें तो यह बाँध 10 दिनों में बन जाएगा। जब प्राण संकट में हों तो लोग कुछ भी कर लेते हैं. एक साधू स्वामी हरिनारायणानंद था ने "भारत सेवक समाज" नाम की संस्था बनायीं. रात दिन महीनों बूढ़े बच्चे जवान मर्द औरत सभी ने मिलकर सहरसा सुपौल के इलाके में कोशी पर बाँध बनाया गया। मेरे नानाजी कोशी बाँध आंदोलन के हिस्सा थे और उन्होंने श्रमदान नाम से एक नाटक लिखा था जिसका वह गाँव गाँव जान समर्थन जुटाने के लिए मंचन किया करते थे. उसी समय अधवारा समूह आंदोलन भी चला था. अधवारा समूह मिथिला की अन्य छोटी बड़ी नदियों का समूह है. मांग थी की सरकार इन पर भी बाँध बनाये।
गिद्ध और कौए मौत और महामारी चाहते हैं और नेता व अधिकारी बाढ़ की कामना करते हैं क्यों की रिलीफ के नाम लूट मचाया जाता है जिसका कोई ऑडिट नहीं होता है. लेकिन सरकारें आपके लिए बाँध क्यों बनाये रिलीफ क्यों दे क्या आप मिथिला से हैं, और जो आप मिथिला से हैं तो आपको बाँध, बाढ़ प्रबंधन और रिलीफ के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी। सो जब 1954 में कोशी में भीषण बाढ़ आयी थी उस वक़्त सहरसा के तत्कालीन कांग्रेस नेता राजेंद्र मिश्रा ने रिलीफ़ख़ोर बिहार सरकार को मिथिला की अनदेखी करने के लिए कड़ा पत्र लिखा था.
तो मिथिला में बाढ़ हरेक साल आती है नेता हरेक साल हवाई सर्वेक्षण करते हैं तत्काल कार्रवाई और स्थायी समाधान का भाषण देते हैं. 60 साल पहले और आज दिए गए उनके बयान में कोई फर्क नहीं पड़ा है. हाँ संजय झा और कीर्ति आजाद जरूर लफ्फाजी के स्तर को ऊँचा करने करने की कोशिश कर रहे हैं जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं क्यों की अगर जनता को ठगो तो कुछ बड़ा ठगो. दोनों श्रीमान से बस यही प्रार्थना है की एयरपोर्ट को ऊँची जमीन पर बनाइयेगा क्यों की यह मिथिला है बाढ़ कहीं और कभी भी आ सकती है तब लोग आप पर फिकरे कसेंगे की गयी प्लेन पानी में. प्लेन के बाद आपका अगला सगुफा क्या होगा बता दीजियेगा।
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